Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(द्वादशी तिथि)
  • तिथि- वैशाख कृष्ण द्वादशी
  • शुभ समय-9:11 से 12:21, 1:56 से 3:32
  • व्रत/मुहूर्त-प्रदोष व्रत
  • राहुकाल- सायं 4:30 से 6:00 बजे तक
webdunia
Advertiesment

आत्मानुशीलन का पर्व : पर्युषण

हमें फॉलो करें आत्मानुशीलन का पर्व : पर्युषण
FILE
- डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि

चत्तारिपरमंगाणि, दुल्लहाणीय जंतुणो
माणुसत्तं सुई सद्धार, संजमम्मि य वीरिय

आत्मप्रक्षालन में आत्मानुशीलन, आत्माभिव्यक्ति, आत्मचिंतन एवं आत्मा के विशुद्ध भावों की प्रमुखता होती है। मनुष्य जीवन में विशुद्धि आत्मा स्वरूप से पूर्व यह चिंतन किया जाता है कि मैं मनुष्य हूं, मेरा कर्म धर्म-श्रवण है, मेरी शक्ति आस्था के विविध आयामों पर केंद्रित है और मैं विशुद्ध आत्मस्वरूप में स्थित संयम पुरुषार्थ से ऊपर भी हूं।

मैं हूं मनुष्य : मननशील व्यक्ति, चिंतनशील व्यक्ति एवं भेद विज्ञान करने वाला मानव भी हूं। मानव में स्थित में शरीर इन्द्रिय, स्थान और पदार्थ की सिद्धि का ध्यान रखता हूं, क्योंकि मनन की क्षमता इसके बिना नहीं हो सकती है।

पर्युषण- आत्मानुशीलन का पर्व

हम सभी जानते हैं कि मैं मानव से मननशील बना हुआ, आत्मसाधना के लिए, संयम एवं तपाराधना की ओर उन्मुख होता हूं, पर्युषण की आराधना में यही तो है कि जो कुछ भी संसार में उपार्जित कार्य किए वे अज्ञान से परिपूर्ण हैं, अज्ञान अवस्थित है।

webdunia
FILE


आध्यात्मिक चिंतन के पर्व में नई सोच एवं नई दिशा की प्राप्ति होती है इसलिए पर्युषण महापर्व पर जो चिंतन किया जाता है वह सांसारिक पदार्थों से विमुक्ति की ओर ले जाता है।

मानव भव दुर्लभता से प्राप्त होता है। उसमें भी उत्तम धार्मिक कुल के साथ-साथ आत्मजागृति के मार्ग वाले महान पर्व पर्युषण मनाने का सौभाग्य जिन्हें प्राप्त होता है वे अपने आपको क्षमाशील बनाने में समर्थ होते हैं। वे आध्यात्मिकता के रंग में रंगे हुए व्रत प्रत्याख्यान एवं तप करने वाले साधना वर्ग की साधना से अलंकृत होते हैं।

पर्युषण में आध्यात्मिक, धार्मिक एवं मन को प्रशांत रूप बनाने के साधन रहते हैं तभी तो इस पर्व की पवित्रता में आमोद-प्रमोद जैसे भाव खान-पान, हंसी-मजाक आदि कुछ भी नहीं रहते हैं।

अष्ट दिवसीय इस महापर्व में सामान्य पहनावा होता है और इसके विश्राम में भू-शयन अथवा चटाई का आसन ही होता है। इससे जीवन में एक नए परिवर्तन के भाव जागृत होते हैं।

मानवीय भावना उच्च शिखर तक पहुंचती है, तब यह कहना पड़ता है कि उपशांति के इस पावन पर्व में वैराग्य की वृद्धि, स्वाध्याय की आत्मशुद्धि एवं क्षमा की असीम शक्ति के दर्शन होते हैं। इस अवस्था में स्थित साधक वर्ग वरण एवं अन्य सभी विवादों को भुलाकर आत्मशुद्धि, शांति एवं समतामय जीवन के कारणों को प्राप्त करता है।


webdunia
WD


पर्युषण : आत्मा के सन्निकट जाने का मार्ग :

पर्युषण में उपासना ही उपासना होती है। आत्मदर्शन से परमात्म दर्शन के सिद्ध, बुद्ध एवं मुक्त स्वरूप के विशिष्ट भाव होते हैं। इसकी उपासना में वही व्यक्ति स्थित होते हैं, जो क्षमा के महासमुद्र में गहराई को लेकर बैठते हैं। उस गहराई में भी ज्ञान, दर्शन, चारित्र और सम्यक् तप की उपासना होती है।

आत्मा की शुद्धि का यह महापर्व जब अष्ट दिवस रूप में चलता है उस समय तपस्या ही तपस्या होती है। प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण एवं आराधना के भाव भी होते हैं। इसमें वाद-विवाद, मतभेद, मनभेद, ईर्ष्या, कलह एवं अहंकार का किंचित मात्र भी स्थान नहीं होता है। इसकी शुद्धि में उपशमन एवं त्याग तप की महानता भी है।

webdunia
FILE


पर्युषण के इस क्षमापण में क्या होता है? ये प्रश्न मन में उठते हैं। जानते हुए भी यह कहना पड़ता है कि आत्मशुद्धि इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका इत्यादि सभी बाल-वृद्ध, नर-नारी प्रमादवश पारस्परिक कलह-द्वेष को भूलकर निम्न क्रियाओं की ओर अग्रसर होते हैं-

1. सांवत्सरिक प्रतिक्रमण (प्रत्येक साधक का लक्ष्य), 2. केशुलंचन (साधु-साध्वी), 3. तपस्या, 4. आलोचना, 5. क्षमा।

यह महापर्व धर्म जागरण का पर्व है। इसमें क्षमापना, क्षमा करना और क्षमा मांगना भी निहित है। पर्व के अंतिम दिवस संवत्सरी महापर्व के धर्म जागृति के भाव से मुक्त साधक एक ही स्थान पर रहकर यही भाव पाता है कि मैं गृहस्थ धर्म में जो भी धर्म साधना कर पाया वही मेरी है, परंतु सांसारिक वृत्तियों के कारण जो समरंभ-समारंभ न आरंभ जैसे कार्य मैंने किए हैं उनके कारण सहनशीलता में कमी आई है इसलिए मैं आठवें दिवस कषायों की शांति के लिए क्षमा को धारण करते हुए चिंतन कर रहा हूं कि मैंने अष्ट दिवस में ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप की साधना की है, जो सदैव बनी रहे। आत्मशुद्धि की यही दिशा कर्मबंधन से छुटकारा प्राप्त कराने वाली है और यही कामना करता हूं कि मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित रहे एवं चिंतन करता हूं-

खामेमि सव्वे जीवा, सव्वे जीवा खमन्तु में
मित्ती से सव्वभूएसो, वेर मंजम न केणई

जगत में अनंत जीव हैं- छोटे हैं, बड़े हैं, ज्ञात-अज्ञात हैं, वे सभी मेरे द्वारा किसी न किसी रूप में कष्ट को प्राप्त होते होंगे या उनको जाने या अनजाने में आर्त्त या रुर्द्ध परिणामों के कारण सताया गया हो, कष्ट दिया गया हो तो मैं उन सभी जीवों के प्रति क्षमा-भावना रखता हूं, क्षमा करता हूं और क्षमा मांगता हूं।

क्षमा को विकसित करने के लिए आत्मशोधन के इस मार्ग को अपने से दूर नहीं करना चाहता हूं।

मैंने क्रोध किया, मान बढ़ाया, माया संचित की ओर लोभ में ज्वालाओं से संतृप्त हुआ, मिथ्यात्व-पाप को बुलाता रहा इसलिए समता, शांति, तप और संयम के इस क्षमापर्व पर पारस्परिक वैर-विरोध को शांत करना चाहता हूं।

क्षमा है- प्रेम। करुणा की निर्मल धारा जो आत्मा से परमात्मा को दिखलाती है, ब्रह्म से परम ब्रह्म की ओर ले जाती है, अनंत दर्शन, अनंत ज्ञान, अनंत सुख एवं अनंत शक्ति के निवास रूप यह क्षमा आत्मशुद्धि का प्रधान संबल है


हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi