Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia

आज के शुभ मुहूर्त

(महानंदा नवमी)
  • तिथि- माघ शुक्ल नवमी
  • शुभ समय- 6:00 से 7:30, 12:20 से 3:30, 5:00 से 6:30 तक
  • व्रत/मुहूर्त-महानंदा नवमी, गुप्त नवरात्रि नवमी
  • राहुकाल-दोप. 1:30 से 3:00 बजे तक
webdunia

क्षमा मैत्री की अमृत धारा

Advertiesment
हमें फॉलो करें क्षमा मैत्री की अमृत धारा
-सुरेन्द्र कलशध
पर्युषण जैन धर्म का एक ऐसा सौभाग्यशाली पर्व है, जिसमें दोनों सिरों पर क्षमा उपस्थित है। एक उत्तम क्षमा के रूप में तो दूसरी क्षमावाणी/ क्षमायाचना के रूप में। एक पर्युषण की अगवानी के लिए मंगल कलश लिए प्रतीक्षित है तो दूसरी उसकी बिदा बेला में स्वागतार्थ खड़ी है।

एक क्षमाप्रथम सीढ़ी पर आसीन है तो दूसरी अंतिम सीढ़ी पर। दोनों एक-दूसरे को देख रहे हैं मानो कह रहे हों जो तेरा रूप है वह मेरा स्वरूप है। इसी रोशनी में जनजीवन आनंद का अनुभव करता है। यहीं आकर मानवता पुष्ट होती है और दूर करती है उन अवरोधों को, जो भावनात्मक विकास में बाधक होते हैं।

प्रश्न उठता है कि आखिर यह क्षमावाणी क्या है? प्रश्न की तलहटी में समाधान की शीत बयार आएगी। वस्तुतः क्षमावाणी जो क्षमावाणी के नाम से लोकव्याप्त है, वह अध्यात्म, आगम और लोक तीन तरह की भाषाओं में रूपायित है। अध्यात्म में, निश्चय नय, रत्नत्रय में हुई आसादना स्खलन के लिए स्वयं का, स्वयं के द्वारा, स्वयं में क्षमायाचना।

आगम की भाषा में उनतीस अंगी क्षमावाणी की छवियाँ दो रूपों में प्रकट हुई हैं। प्रथम यह कि सम्यक दर्शन के अष्टांग, सम्यकज्ञान के अष्टांग तथा सम्यक चारित्र के त्रयोदश अंगों की अज्ञान, प्रमाद एवं रागादिक कषायमूलक वृत्तियों द्वारा हुई असादना, अवमानना के लिए देव, गुरु और माँ जिनवाणी की साक्षी पूर्वक रचनात्मक एवं भावनात्मक क्षमायाचना।

दूसरी तीर्थंकर प्रकृति के कारणभूत षोडशकारण भावना, दसलक्षण पर्व एवं रत्नत्रय। इस प्रकार उनतीस अंगी क्षमावाणी का उल्लेख भी मिलता है अर्थात इसमें आराधक/ उपासक, आराधना/ उपासना कर तीसवें दिन रत्नत्रय की परिसमाप्ति पर क्षमायाचना करते हैं/क्षमावाणी पूजन करते हैं।

सम्प्रति व्यवहार जगत क्षमावाणी की पूजन करते हुए भी वास्तविकता से अनभिज्ञ है। केवल लोकभाषानुसार परस्पर गले मिलना, हाथ जोड़ना अथवा अपने से बड़ों, पूज्यों, आदरणीयों को ढोक देना ही क्षमावाणी का अर्थ समझते हैं। क्षमावाणी आज पड़वा ढोक के नाम से ही ख्यात हो रही है। इतना सब होते हुए भी उसका वास्तविक ढाँचा खोखला ही है, कारण उस पर औपचारिकता की चादर चढ़ा दी गई है।

क्षमा का जामा माफी ने पहन लिया है। मान-सम्मान, पाद-पूजन की प्यास का पिपासु उपशांति हेतु भी माफ कर देता है, किंतु क्षमा इन सब प्रोपेगंडों से सदासर्वदा अछूती रहती है। क्षमा ऐसी अमृतधार है, जिसमें कटुता के सारे विष धुल जाते हैं और बहता है-मैत्री का अमृत प्रवाह।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi