हेतु- चोर का भय दूर होता है।
वक्त्रं क्व ते सुर-नरोरग-नेत्र हारि निःशेष-निर्जित-जगत्त्रितयोपमानम् ।
बिम्बं कलंकमलिनं क्व निशाकरस्य यद् वासरे भवति पाण्डु-पलाश-कल्पम् ॥ (13)
देव व मानव... सभी के नेत्र जहाँ स्थिर हो जाते हैं... तीन भुवन की तमाम तुलनाएँ जहाँ आकलित हैं... वैसा आपका सुंदर मुखड़ा कहाँ? और कहाँ वह दागवाला धुँधला-सा... चाँद, जो कि रात ढलते-ढलते तो पलाश के पत्ते की भाँति पीला-फीका पड़ जाता है।
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो उज्जुमईणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं हं स ऐं ह्राँ ह्रीं द्राँ द्रीं द्रौं द्रः मोहिनि सर्वजनवश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।