दिगंबर जैन समाज में महापर्व पयुर्षण के अंतर्गत आने वाली दशमी को सुगंध दशमी का पर्व मनाया जाता है। यह व्रत भाद्रपद शुक्ल दशमी को किया जाता है। इसे सुगंध दशमी के अलावा धूप दशमी भी कहा जाता है।
इस पर्व के तहत जैन धर्मावलंबी सभी जैन मंदिरों में जाकर धूप अर्पित करते हैं। जिससे वायुमंडल सुगंधमय व स्वच्छ हो जाता है। जैन मंदिरों में 24 तीर्थंकरों को धूप अर्पित कर भगवान से प्रार्थना करेंगे - हे भगवान! इस सुगंध दशमी के दिन, मैं आनंद की तलाश के रूप में अपने नाम में प्रार्थना करता हूं। मैं तीर्थंकरों द्वारा बतलाए मार्ग का पालन करने की प्रार्थना करता हूं, जो ज्ञान और मुक्ति का एहसास कराते हैं। हे भगवान, मैं आपके नाम का ध्यान धरकर मोक्ष प्राप्ति की कामना करता हूं।
इस दिन मंदिरों में विशेष साज-सज्जा के साथ आकर्षक मंडल विधान एवं मनोहारी झांकियों का निर्माण भी किया जाता है। इस अवसर पर सुगंध दशमी कथा का वाचन भी होता है। इस पर्व के मौके पर जिनवाणी व पुराने शास्त्रों के सम्मुख धूप चढ़ाई जाएगी तथा उत्तम तप धर्म की आराधना कर आत्म कल्याण की कामना की जाएगी।
सुगंध दशमी व्रत का दिगंबर जैन धर्म में काफी महत्व है और स्त्रियां हर वर्ष इस व्रत को करती हैं। धार्मिक व्रत को विधिपूर्वक करने से मनुष्य के सारे अशुभ कर्मों का क्षय होकर पुण्य की प्राप्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही सांसारिक दृष्टि से उत्तम शरीर प्राप्त होना भी इसका व्रत फल बताया गया है।
सुगंध दशमी के दिन हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील, परिग्रह इन पांच पापों के त्याग रूप व्रत को धारण करते हुए चारों प्रकार के आहार का त्याग, मंदिर में जाकर भगवान की पूजा, स्वाध्याय, धर्मचिंतन-श्रवण, सामयिक आदि में अपना समय व्यतीत करना चाहिए।
कहा गया है....
पर्व सुगंध दशै दिन जिनवर पूजै अति हरषाई,
सुगंध देह तीर्थंकर पद की पावै शिव सुखदाई।।
- हे भगवान! सुगंध दशमी के दिन सभी तीर्थंकरों का पूजन कर मेरा मन हर्षित हो गया है। धूप के इस पवित्र वातावरण से स्वयं भगवान भी खुश होकर मानव को मोक्ष पद का रास्ता दिखलाते हैं।