हेतु- धन एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
उन्निद्र हेम नव पंकज पुंजकान्ती- पर्युल्लसन्नख मयूख शिखाभिरामौ ।
पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र धत्तः पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ॥ (36)
सुवर्ण-कमल से ये आपके चरण-कमल, जिनके नखों की कांति भी अद्भुत है... जहाँ-जहाँ पर आप कदम रखते हैं... वहाँ-वहाँ देवगण तत्क्षण सुवर्ण-कमल की रचना करते हैं।
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो विप्पोसहिपत्ताणं ।
मंत्र- ॐ ह्रीं श्रीं कलिकुंड दंडस्वामिन् आगच्छ आगच्छ आत्म-मंत्रान् आकर्षय आकर्षय आत्म-मंत्रान् रक्ष रक्ष परमंत्रान् छिन्द छिन्द मम समीहितं कुरु कुरु स्वाहा।