हिंसा से, असत्य से, चोरी से, कुशील से और परिग्रह से विरत होने का नाम है- व्रत।
थोड़े अंश में इनसे विरत होना है- अणुव्रत। सर्वांश में इनसे विरत होना है- महाव्रत। गृहस्थ अणुव्रती होते हैं, मुनि महाव्रती।
व्रतों और शीलों के पाँच-पाँच अतिचार हैं।
अहिंसाव्रत के अतिचार
बंध- किसी भी प्राणी को उसके इष्ट स्थान को जाने से रोकना या बाँधना।
वध- डंडा या चाबुक आदि से प्रहार करना।
छविच्छेद- कान, नाक, चमड़ी आदि को छेदना।
अतिभार का आरोपण- मनुष्य या पशु आदि पर उसकी शक्ति से अधिक बोझ लादना।
अन्नपान का निरोध- किसी के खान-पान में रुकावट डालना।