हेतु- मस्तक के रोग मिट जाते हैं।
त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं ब्रह्माणमीश्वरमनंतमनंगकेतुम् ।
योगीश्वरं विदित-योगमनेकमेकं ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥ (24)
संत जन कहते हैं, आप अव्यय हैं... विभु-वैभवयुक्त हैं, आदि ब्रह्म हैं, अनंत-ईश्वर हैं, अनंगकेतु हैं, योगीश्वर हैं, अनेक योगरूप हैं, एक ज्ञानस्वरूप हैं! (शायद कौन-सी तुलना आपमें घटित नहीं होगी?)
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो दिट्ठिविसाणं ।
मंत्र- ॐ नमो भगवते वद्धमाणसामिस्स सर्वसमीहितं कुरु कुरु स्वाहा।
तप्त पदार्थ शीतल बनाने हेतु
हेतु- अग्नि का भय दूर होता है, तप्त पदार्थ शीतल बन जाते हैं।
बुद्धस्त्वमेव विबुधार्चित-बुद्धि-बोधात् त्वं शंकरोऽसि भुवन-त्रय-शंकरत्वात् ।
धाताऽसिधीर! शिव-मार्ग-विधेर्विधानात् व्यक्तंत्वमेव भगवन् ! पुरुषोत्तमोऽसि ॥ (25)
आप बुद्ध हैं- बुद्धिनिधान देवों से अर्चित होने के कारण! आप शंकर हैं- तीन भुवन को शांति प्रदान करने के कारण! आप धीर हैं- मुक्ति मार्ग का प्रवर्तन करने के कारण! हे भगवन्त! आप सचमुच पुरुष-श्रेष्ठ हैं।
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो उग्गतवाणं ।
मंत्र- ॐ नमो ह्राँ ह्रीं ह्रूँ ह्रौं ह्रः अभिआउसा झ्रौं झ्रौं स्वाहा ।