हेतु- सुख-सौभाग्य बढ़ता है, उच्च पदवी प्राप्त होती है।
उच्चैरशोक तरु संश्रितमुन्मयूखमाभाति रूपममलं भवतो नितान्तम् ।
स्पष्टोल्लसत्किरण मस्त-तमोवितानं बिम्बं रवेरिव पयोधर पार्श्ववर्ति ॥ (28)
ऊँचे अशोक वृक्ष की शीतल सुगंध भरी छाँव के तले आपका यह निर्मल-पवित्र रूप कितना लुभावना प्रतीत हो रहा है...! जैसे कि घनघोर घटाओं को चीरकर सूरज की सुनहली किरणों का समूह फैल रहा हो!
ऋद्धि- ॐ ह्रीं अर्हं णमो महातवाणं ।
मंत्र- ॐ नमो भगवते जय-विजय जृम्भय जृम्भय मोहय मोहय सर्वसिद्धि सम्पत्ति सौख्यं कुरु कुरु स्वाहा।