जम्मू। उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा कश्मीर संभाग में कार्यरत कर्मियों को जम्मू में स्थानांतरित करने से स्पष्ट इंकार कर दिया है। उनका कहना है कि उन्हें अब वेतन भी नहीं दिया जाएगा और वेतन पाने के लिए उन्हें कश्मीर लौटना होगा और वहीं कार्य करना होगा। नतीजतन मामले को लेकर कश्मीरी पंडित कर्मचारी और सरकार आमने-सामने आ गई है।
पिछले करीब 220 दिनों से ये कर्मचारी जम्मू में प्रतिदिन धरना और प्रदर्शन कर रहे हैं। एक बार नंगे पैर लंबा मार्च भी कर चुके हैं, पर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। हालत यह है कि पिछले छह महीनों से न ही कोई उनकी सुन रहा है और न ही कोई चर्चा कर रहा है।
दरअसल इस साल 12 मई को एक कश्मीरी सरकारी कर्मचारी राहुल बट की उसके ऑफिस के भीतर घुसकर हुई हत्या के बाद सैकड़ों कश्मीरी विस्थापित सरकारी कर्मचारी कश्मीर से भागकर जम्मू आ गए। वे सभी पीएम पैकेज के तहत कश्मीर में सरकारी नौकरी कर रहे थे जिसकी प्रथम शर्त यही थी कि उन्हें आतंकवादग्रस्त कश्मीर में ही नौकरी करनी होगी।
हालांकि कश्मीर प्रशासन ने उन्हें सुरक्षित स्थानों पर तैनात करने का आश्वासन तो दिया पर वे नहीं माने क्योंकि उनकी नजरों में अभी भी कश्मीर में उनके लिए कोई जगह सुरक्षित नहीं है। आज जम्मू में बात करते हुए उपराज्यपाल ने कहा कि उनकी सुरक्षा के लिए पूरे कदम उठाए गए हैं, पर कश्मीरी पंडित हिंदू कर्मचारी उनकी बातों पर विश्वास करने को राजी नहीं हैं।
ऑल माईग्रांट इंप्लाइज एसोसिएशन कश्मीर के प्रधान रूबन सिंह का कहना है कि इंटरनेट मीडिया पर टीआरएफ सूची जारी कर रहा है और धमकियां जारी कर रहा है। ताजा मामले में भी उसने 17 कर्मचारियों की सूची जारी की है। अब तक आतंकी पीएम पैकेज के 100 कर्मियों के नामों को इंटरनेट मीडिया पर डाल चुके हैं।
यह आतंकियों की खुली धमकी है और इससे इन कर्मचारियों की चिंताएं बढ़ गई हैं। जिस तरह के हालात घाटी में बने हुए हैं, उसे देखते हुए अब कश्मीरी हिंदू कर्मचारियों का घाटी में जाकर नौकरी करना संभव नहीं। उन्होंने कहा कि आतंकियों की नजर हिंदू कर्मचारियों पर है और धीरे-धीरे इनके नाम की सूची इंटर मीडिया पर डाल रहे हैं।
पर एलजी मनोज सिन्हा का कहना है कि प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक कर कश्मीरी पंडित एवं आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों की मांगों पर विचार किया गया है। उन्हें घाटी में जिला या तहसील मुख्यालय तैनात किया गया है। कुछ कर्मचारी जो रुरल में तैनात हैं, उन्हें शहर के नजदीकी गांवों में लगाया गया है। कश्मीरी माइग्रेंट या अल्पसंख्यक वर्ग के कर्मचारियों को दो या तीन को एक साथ तैनात किया गया है।
उनका दावा था कि सुरक्षा को लेकर उनकी समस्या सुनने के लिए जिला स्तर पर अधिकारी तैनात किए गए हैं। उनकी पदोन्नति के लिए भी पब्लिक सर्विस कमीशन के उच्च अधिकारी से बात की गई है। उनके लिए रहने की व्यवस्था के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। फिलहाल दोनों पक्षों के बीच तनातनी का माहौल बरकरार था।
Edited By : Chetan Gour