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इस युग में भी प्रासंगिक है श्रीकृष्ण का मैनेजमेंट

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हमें फॉलो करें इस युग में भी प्रासंगिक है श्रीकृष्ण का मैनेजमेंट
जानिए श्रीकृष्ण के कुशल प्रबंधन को
- ऋषि गौतम

क्या श्रीकृष्ण केवल भगवान हैं?क्या श्रीकृष्ण केवल एक अवतार थे? या कुछ और... यूं तो भगवान श्रीकृष्ण और उनकी लीलाओं से तो हम आप सभी परिचित हैं। उनके विचारों,कर्मों,कलाओं और लीलाओं पर अगर आप ध्यान देंगे तो पाएंगे कि श्रीकृष्ण सिर्फ एक भगवान या अवतार भर नहीं थे। इन सबसे आगे वह एक ऐसे पथ प्रदर्शक और मार्गदर्शक थे,जिनकी सार्थकता हर युग में बनी रहेगी।



श्रीकृष्ण द्वारा गीता में कहे गए उपदेशों का हर एक वाक्य हमें कर्म करने और जीने की कला सिखाता है। जिसकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है जितनी कल थी। आज के बदलते माहौल और जीवनशैली में भी कान्हा उतने ही महत्वपूर्ण हैं। इतना ही नहीं समाज के आम जनजीवन से हटकर मैनेजमेंट के क्षेत्र में तो कृष्ण को सबसे बड़ा मैनेजमेंट गुरु माना जाता है। आज हम आपको रूबरू करवाते हैं मैनेजमेंट गुरु श्रीकृष्ण से. .......

श्रीकृष्ण यानी बुद्धिमत्ता,चातुर्य,युद्धनीति,आकर्षण,प्रेमभाव,गुरुत्व,सुख,दुख और न जाने क्या-क्या?एक भक्त के लिए श्रीकृष्ण भगवान तो हैं ही,साथ में वे जीवन जीने की कला भी सिखाते हैं। आज के इस कलयुग के लिए गीता के वचन क्या कहते हैं? दरअसल,श्रीकृष्ण में वह सब कुछ है जो मानव में है और मानव में नहीं भी है!

वे संपूर्ण हैं,तेजोमय हैं,ब्रह्म हैं,ज्ञान हैं। इसी अमर ज्ञान की बदौलत आज भी हम श्रीकृष्ण के जीवन प्रसंगों और गीता के आधार पर कार्पोरेट सेक्टर में मैनेजमेंट के सिद्धांतों को गीता से जोड़ रहे है। श्रीकृष्ण ने धर्म आधारित कई ऐसे नियमों को प्रतिपादित किया,जो कलयुग में भी लागू होते हैं। छल और कपट से भरे इस युग में धर्म के अनुसार किस प्रकार आचरण करना चाहिए। किस प्रकार के व्यवहार से हम दूसरों को नुकसान न पहुंचाते हुए अपना फायदा देखें।

जन्माष्टमी के अवसर पर हमने भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से कुछ ऐसे ही सूत्र निकालने की कोशिश की है जो आज भी कार्पोरेट कल्चर में अपनाए जाते हैं। निश्चित रूप से मैनेजमेंट के यह सूत्र आज से कई सौ वर्ष पहले के हैं पर आज भी उतने ही सामयिक हैं जितने पहले थे।

अगले पेज पर : श्रेष्ठ प्रबंधक


श्रेष्ठ प्रबंधक-

अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए श्रेष्ठ मैनेजर के रूप में भगवान श्रीकृष्ण को चुना था और अंत में विजयी भी हुआ। किसी भी कंपनी में अगर मैनेजर श्रेष्ठ हो,तब वह किसी भी प्रकार के कर्मचारियों से काम करवा सकता है।

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इसके उलट अगर कंपनी के पास केवल श्रेष्ठ कर्मचारी हैं और उन्हें देखने वाला कोई नहीं है या नेतृत्वकर्ता को खुद ही सही दिशा का ज्ञान नहीं है तब जरूर मुश्किल आ सकती है।

ऐसे में सभी कर्मचारी अपनी बुद्धि के अनुसार काम तो करेंगे पर उन्हें सही मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं होगा। ऐसे में कंपनी किस ओर जाएगी,यह कह नहीं सकते।

अगले पेज पर : नैतिक मूल्य व प्रोत्साहन


नैतिक मूल्य व प्रोत्साहन-

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि युद्ध नैतिक मूल्यों के लिए भी लड़ा जाता है। कौरव व पांडव के बीच युद्ध के दौरान अर्जुन को कौरवों के रूप में अपने ही लोग नजर आ रहे थे। ऐसे में वह धनुष उठाने से मनाकर देते हैं।

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तब श्रीकृष्ण यद्ध के मैदान में ही अर्जुन को अपने उपदेशों के माध्यम से नैतिकता और अनैतिकता का पाठ पठाते हैं,और युद्ध के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इसी तरह आज के प्रबंधकों को भी असंभव लक्ष्य पूरा करने के लिए दिए जाते है। ऐसे में कृष्ण जैसे प्रोत्साहनकर्ता की भी जरूरत है।

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अहंकार न करें-

गीता में कहा गया है कि अहंकार के कारण नुकसान होता है। कई बार प्रबंधक लगातार सफलता प्राप्त करने के बाद अपनी ही पीठ ठोंकता रहता है। वह यह समझने लगता है कि अब सफलता उसके बाएं हाथ का खेल है।

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इसके बाद जब उसे असफलता मिलती है तो क्रोध व अन्य विकारों का जन्म होता है। फिर व्यक्ति अपनी आकांक्षाएं पूरी न होने की स्थिति में तुलना करना आरंभ कर देता है। उसे जो कार्य दिया रहता है,उसमें मन नहीं लगता और वह भटक जाता है। इस कारण अहंकार से दूर रहना चाहिए,तब ही सभी तरह की सफलताएं आप पचा पाएंगे।

अगले पेज पर : क्षमाशील बनें


क्षमाशील बनें -

प्रबंधन में रहते हुए प्रबंधक को उद्दण्ड तथा अक्षम सहायक को भी क्षमा करना चाहिए तथा बार-बार उसे आगाह करते रहना चाहिए परंतु जब वह सीमा पार करने लगे और दण्ड देने के अतिरिक्त कोई चारा न हो तो ऐसा दण्ड दिया जाना चाहिए जो दूसरों के लिए भी उदाहरण का काम करे।


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अगले पेज पर : विशाल ह्रदय बनें

विशाल ह्रदय बनें-

प्रबंधनकर्ता को हमेशा धैर्य से काम लेना चाहिए। छोटी-छाटी चीजों पर उसे अपना आपा नहीं खोना चाहिए,और जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए। इसके लिए प्रबंधक को विशाल ह्रदय का होना पड़ेगा। वहीं आवश्यकता पड़ने पर अनुशासन को बनाए रखने के दृष्टिकोण से किसी तरह की कोमलता भी नहीं दिखानी चाहिए।

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भीतरी व बाहरी सौन्दर्य का रखें ध्यान - महाभारत के युद्ध के दौरान जब अर्जुन के मन में कृष्ण के को लेकर सवाल पैदा होता है और श्रीकृष्ण से वह पूछ बैठते हैं कि प्रभु आप कौन हैं?इस प्रश्न पर कृष्ण अपना दिव्य स्वरूप प्रकट करते हैं।

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कृष्ण के इस विराट स्वरूप वाले दृश्य से हमें यह सीख मिलती है कि मैनेजर को अपना स्वरूप कैसा रखना चाहिए। दरअसल,कृष्ण ने संपूर्ण सौंदर्य के बारे में कहा है कि मन की शुद्धता के साथ ही तन का वैभव भी नजर आना चाहिए। ठीक इसी तरह एक मैनेजर को भी अपने लुक्स की तरफ ध्यान देना चाहिए। उसका सौन्दर्य केवल बाहरी नहीं हो,बल्कि भीतरी भी होना चाहिए।



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अपडेट रहें-

कृष्ण कहते हैं कि कर्म करते रहो,पर साथ में आगे बढ़ने के लिए अपने आपको अपडेट भी करते रहो। अपने ज्ञान को अपडेट किए बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते। समय को पहचानें और उसके अनुसार ज्ञान हासिल करें,तभी आप तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।

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सर्वग्राही बनें-

किसी भी प्रबंधक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने क्षेत्र के अतिरिक्त विभिन्न क्षेत्रों के विषय में जितनी अधिक जानकारी रखेगा,वह उतना ही सफल प्रबंधन तथा अपनी टीम का मार्गदर्शन कर सकेगा। इसके लिए जरूरी है कि वह अपने आंख,नांक,कान को खुला रखें और सारी सूचनाओं को अपने तक आने दे। साथ ही अपने अन्य लोगों और कर्मचारियों की राय पर भी गौर करें।

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सबको लेकर चले-

प्रबंधन में अक्सर ये चुनौती आती है,एक ही वक्त में कोई बहुत आगे निकल जाता है तो कोई थोड़ा पीछे छूट जाता है। ऐसे में बहुत सारे लोग अपनी-अपनी प्रतिष्ठा और अपने अहं को लेकर अ़ड़ जाते हैं तब समस्या जटिल हो जाती है। सभी की प्रतिष्ठा बनी रहे तथा समस्या का समाधान भी हो जाए,यह कुशल प्रबंधक का ही काम होता है। श्रीकृष्ण ने अपनी इस प्रतिभा का अनेक अवसरों पर परिचय दिया।
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आत्मनिरीक्षण करें-

गीता में श्रीकृष्ण मनुष्य को लगातार आत्मनिरीक्षण के लिए प्रेरित करते हैं। कई बार मनुष्य दूसरों के कहने पर उद्विग्न हो जाता है और कई बार अपने कटु वचनों से दूसरों को उद्विग्न कर देता है। प्रोफेशनल लाइफ में यह दोनों बातें करियर के लिए घातक होती हैं। कान्हा इनसे बचते हुए स्वधर्म का पालन करने की भी सलाह देते हैं।


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नवसृजन और जनकल्याण के प्रणेता भगवान श्रीकृष्ण की अनेक छवियां भारतीय जनमानस से जुडी हुई हैं। श्रीकृष्ण में सबसे खास बात यह है कि उनका दर्शन व्यावहारिक था। यही वजह है कि वे दुनिया के पहले मैनेजमेंट गुरु भी कहलाते हैं। जीवन को यथार्थ में देखने की उनकी दृष्टि थी। वे परिस्थिति के अनुसार निर्णय लेते थे। इस लिहाज से उनके प्रबंधन नीति आज भी प्रासंगिकता है। संक्रमण और तथाकथित सुशासन के इस दौर में आज जब पूरे विश्व में नीतियों का संकट है। एक बार फिर श्रीकृष्ण के प्रबंधन और दर्शन की जरूरत महसूस हो रही है।


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