Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

कितना जानते हैं आप कृष्णप्रिया श्रीराधाजी को, पढ़ें रहस्यमयी 3 पौराणिक कथा....

हमें फॉलो करें कितना जानते हैं आप कृष्णप्रिया श्रीराधाजी को, पढ़ें रहस्यमयी 3 पौराणिक कथा....
राधा द्वापर युग में श्री वृषभानु के घर प्रगट होती हैं। कहते हैं कि एक बार श्रीराधा गोलोकविहारी से रूठ गईं। इसी समय गोप सुदामा प्रकट हुए। राधा का मान उनके लिए असह्य हो हो गया।
 
उन्होंने श्रीराधा की भर्त्सना की, इससे कुपित होकर राधा ने कहा- सुदामा! तुम मेरे हृदय को सन्तप्त करते हुए असुर की भांति कार्य कर रहे हो, अतः तुम असुरयोनि को प्राप्त हो।

सुदामा कांप उठे, बोले-गोलोकेश्वरी ! तुमने मुझे अपने शाप से नीचे गिरा दिया। मुझे असुरयोनि प्राप्ति का दुःख नहीं है, पर मैं कृष्ण वियोग से तप्त हो रहा हूं। इस वियोग का तुम्हें अनुभव नहीं है अतः एक बार तुम भी इस दुःख का अनुभव करो।

सुदूर द्वापर में श्रीकृष्ण के अवतरण के समय तुम भी अपनी सखियों के साथ गोप कन्या के रूप में जन्म लोगी और श्रीकृष्ण से विलग रहोगी। सुदामा को जाते देखकर श्रीराधा को अपनी त्रृटि का आभास हुआ और वे भय से कातर हो उठी।

तब लीलाधारी कृष्ण ने उन्हें सांत्वना दी कि हे देवी ! यह शाप नहीं, अपितु वरदान है। इसी निमित्त से जगत में तुम्हारी मधुर लीला रस की सनातन धारा प्रवाहित होगी, जिसमे नहाकर जीव अनन्तकाल तक कृत्य-कृत्य होंगे। इस प्रकार पृथ्वी पर श्री राधा का अवतरण द्वापर में हुआ।
 
कथा 2 - नृग पुत्र राजा सुचन्द्र और पितरों की मानसी कन्या कलावती ने द्वादश वर्षो तक तप करके श्रीब्रह्मा से राधा को पुत्री रूप में प्राप्ति का वरदान मांगा। फलस्वरूप द्वापर में वे राजा वृषभानु और रानी कीर्तिदा के रूप में जन्मे। दोनों पति-पत्नी बने। धीरे-धीरे श्रीराधा के अवतरण का समय आ गया। सम्पूर्ण व्रज में कीर्तिदा के गर्भधारण का समाचार सुख स्त्रोत बन कर फैलने लगा, सभी उत्कण्ठा पूर्वक प्रतीक्षा करने लगे। वह मुहूर्त आया। भाद्रपद की शुक्ला अष्टमी चन्द्रवासर मध्यान्ह के समये आकाश मेघाच्छन्न हो गया। सहसा एक ज्योति प्रसूति गृह में फैल गई यह इतनी तीव्र ज्योति थी कि सभी के नेत्र बंद हो गए। एक क्षण पश्चात् गोपियों ने देखा कि शत-सहस्त्र शरतचन्द्रों की कांति के साथ एक नन्हीं बालिका कीर्तिदा मैया के समक्ष लेटी हुई है। उसके चारों ओर दिव्य पुष्पों का ढेर है। उसके अवतरण के साथ नदियों की धारा निर्मल हो गई, दिशाएं प्रसन्न हो उठी, शीतल मन्द पवन अरविन्द से सौरभ का विस्तार करते हुए बहने लगी।
 
कथा 3 : पद्मपुराण में राधा का अवतरण
 
पद्मपुराण में भी एक कथा मिलती है कि श्री वृषभानुजी यज्ञ भूमि साफ कर रहे थे, तो उन्हें भूमि कन्या रूप में श्रीराधा प्राप्त हुई। यह भी माना जाता है कि विष्णु के अवतार के साथ अन्य देवताओं ने भी अवतार लिया, वैकुण्ठ में स्थित लक्ष्मीजी राधा रूप में अवतरित हुई। कथा कुछ भी हो, कारण कुछ भी हो राधा बिना तो कृष्ण हैं ही नहीं। राधा का उल्टा होता है धारा, धारा का अर्थ है करंट, यानि जीवन शक्ति। भागवत की जीवन शक्ति राधा है। कृष्ण देह है, तो श्रीराधा आत्मा। कृष्ण शब्द है, तो राधा अर्थ। कृष्ण गीत है, तो राधा संगीत। कृष्ण वंशी है, तो राधा स्वर। भगवान् ने अपनी समस्त संचारी शक्ति राधा में समाहित की है। इसलिए कहते हैं-
 
जहां कृष्ण राधा तहां जहं राधा तहं कृष्ण।
न्यारे निमिष न होत कहु समुझि करहु यह प्रश्न।।
 
इस नाम की महिमा अपरंपार है। श्री कृष्ण स्वयं कहते है- जिस समय मैं किसी के मुख से ‘रा’ सुनता हूं, उसे मैं अपना भक्ति प्रेम प्रदान करता हूं और धा शब्द के उच्चारण करनें पर तो मैं राधा नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे चल देता हूं। राधा कृष्ण की भक्ति का कालान्तर में निरन्तर विस्तार हुआ। निम्बार्क, वल्लभ, राधावल्लभ, और सखी समुदाय ने इसे पुष्ट किया। कृष्ण के साथ श्री राधा सर्वोच्च देवी रूप में विराजमान् है। कृष्ण जगत् को मोहते हैं और राधा कृष्ण को। 12वीं शती में जयदेवजी के गीत गोविन्द रचना से सम्पूर्ण भारत में कृष्ण और राधा के आध्यात्मिक प्रेम संबंध का जन-जन में प्रचार हुआ।
 
भागवत में राधिका-प्रसंग
 
अनया आराधितो नूनं भगवान् हरिरीश्वरः यन्नो विहाय गोविन्दः प्रीतोयामनयद्रहः।
 
प्रश्न उठता है कि तीनों लोकों का तारक कृष्ण को शरण देनें की सामर्थ्य रखने वाला ये हृदय उसी आराधिका का है, जो पहले राधिका बनी। उसके बाद कृष्ण की आराध्या हो गई। राधा को परिभाषित करनें का सामर्थ्य तो ब्रह्म में भी नहीं। कृष्ण राधा से पूछते हैं- हे राधे ! भागवत में तेरी क्या भूमिका होगी ? राधा कहती है- मुझे कोई भूमिका नहीं चाहिए कान्हा ! मैं तो तुम्हारी छाया बनकर रहूंगी। कृष्ण के प्रत्येक सृजन की पृष्ठभूमि यही छाया है, चाहे वह कृष्ण की बांसुरी का राग हो या गोवर्द्धन को उठाने वाली तर्जनी या लोकहित के लिए मथुरा से द्वारिका तक की यात्रा की आत्मशक्ति।
 
आराधिका में आ को हटाने से राधिका बनता है। इसी आराधिका का वर्णन महाभारत या श्रीमद्भागवत में प्राप्त है और श्री राधा नाम का उल्लेख नहीं आता। भागवत में श्रीराधा का स्पष्ट नाम का उल्लेख न होने के कारण एक कथा यह भी आती है कि शुकदेव जी को साक्षात् श्रीकृष्ण से मिलाने वाली राधा है और शुकदेव जी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। कहते हैं कि भागवत के रचयिता शुकदेव जी राधाजी के पास शुक रूप में रहकर राधा-राधा का नाम जपते थे। एक दिन राधाजी ने उनसे कहा कि हे शुक ! तुम अब राधा के स्थान पर श्रीकृष्ण ! श्रीकृष्ण ! का जाप किया करो। उसी समय श्रीकृष्ण आ गए। राधा ने यह कह कर कि यह शुक बहुत ही मीठे स्वर में बोलता है, उसे कृष्ण के हाथ सौंप दिया। अर्थात् उन्हें ब्रह्म का साक्षात्कार करा दिया। इस प्रकार श्रीराधा शुकदेव जी की गुरु हैं और वे गुरु का नाम कैसे ले सकते थे ?
 
राधा प्रेम की पवित्र गहराई  
 
कृष्ण के विराट को समेटने के लिए जिस राधा ने अपने हृदय को इतना विस्तार दिया कि सारा ब्रज उसका हृदय बन गया। इसलिए कृष्ण भी पूछते हैं- बूझत श्याम कौन तू गौरी ! किन्तु राधा और राधा प्रेम की थाह पाना संभव ही नहीं। कुरूक्षेत्र में उनके आते ही समस्त परिवेश बदल जाता है। रूक्मणि गर्म दूध के साथ राधा को अपनी जलन भी देती है। कृष्ण स्मरण कर राधा उसे एक सांस में पी जाती है। रूक्मणि देखती है कि श्रीकृष्ण के पैरों में छाले हैं, मानों गर्म खोलते तेल से जल गए हों। वे पूछती हैं ये फफोले कैसे ? कृष्ण कहते हैं - हे प्रिये ! मैं राधा के हृदय में हूं। तुम्हारे मन की जिस जलन को राधा ने चुपचाप पी लिया, वही मेरे तन से फूटी है। 
 
इसलिए कहते हैं कि-
 
तत्वन के तत्व जगजीवन श्रीकृष्णचन्द्र और कृष्ण कौहू तत्व वृषभानु किशोरी है...

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

गणपति क्यों बैठाते हैं? क्यों पड़ा श्रीगणेश का पार्थिव गणेश नाम, जानिए