योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कहते हैं, प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाएगा। लेकिन इस बार जन्माष्टमी को लेकर जनमानस में कुछ संशय है। संशय के पीछे मूल कारण है अष्टमी तिथि का दो दिन रहना। इस बार अष्टमी तिथि 2 एवं 3 सितंबर को रहेगी जिसके चलते श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मनाए जाने को लेकर विद्वानों में मतभेद है।
कुछ विद्वान रात्रिकालीन अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र को मान्यता दे रहे हैं वहीं कुछ विद्वान सूर्योदयकालीन अष्टमी तिथि को मान्यता दे रहे हैं। इस मतांतर के कारण आम श्रद्धालुगण असमंजस में हैं कि आखिर वे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव किस दिन मनाएं... हम अपने पाठकों के लिए इस संशय के समाधान हेतु कुछ तथ्य रख रहे हैं जिसके आधार पर वे स्वयं इस निर्णय पर आसानी से पहुंच सकेंगे कि श्रीकृष्ण जन्माष्टमी कब मनाई जाए।
शास्त्रोक्त व्यवस्था:
शास्त्रानुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को बुधवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में रात्रि के 12 बजे हुआ था। प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्योत्सव मनाया जाता है। अत: भगवान श्रीकृष्ण के प्राकट्योत्सव के दिन रात्रि में अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र का होना अनिवार्य है।
अष्टमी तिथि दो दिन:
इस वर्ष भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि 2 एवं 3 सितंबर दोनों ही दिन रहेगी। इस वर्ष 2 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 46 मिनट से अष्टमी तिथि का प्रारंभ हो जाएगी एवं 3 सितंबर को अष्टमी तिथि 7 बजकर 19 मिनट पर समाप्त होगी। वहीं रोहिणी नक्षत्र का प्रारंभ 2 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 48 से होगा एवं 3 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 08 मिनट पर रोहिणी नक्षत्र समाप्त होगा।
अत: रात्रि के 12 बजे केवल 2 सितंबर को ही अष्टमी तिथि व रोहिणी नक्षत्र रहेगा। पंचांगों में भी स्मार्त (गृहस्थ) के लिए कृष्णजन्माष्टमी का व्रत 2 सितंबर को एवं वैष्णवों के लिए 3 सितंबर को निर्धारित किया गया है।
इस प्रकार शास्त्रोक्त तथ्य यह है कि जन्माष्टमी का पर्व चूंकि वैष्णव परम्परा के अनुसार ही मनाया जाता है इसलिए देश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 3 सितंबर को ही मनाई जाएगी।
-ज्योतिर्विद पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र