राममनोहर लोहिया की नजर में श्रीकृष्ण
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता राममनोहर लोहिया को कौन नहीं जानता है? अपने विचारों से कई लोगों को आंदोलित कर देने वाले लोहिया ने 1932 में जर्मनी से पीएचडी की और साठ के दशक में उन्होंने अंग्रेजी हटाने का सबसे बड़ा आंदोलन चलाया था।
चित्रकूट में रामायण मेला उन्हीं की संकल्पना थी। लोहिया अपनी इतिहास दृष्टि और उसकी विवेचना के लिए पश्चिम के सिद्धांतों के उपयोग के खिलाफ थे। यही वजह है कि जब उन्होंने कृष्ण पर लिखा तो ऐसा लिखा जो एकदम नया था। 'जन' में 1958 में प्रकाशित लोहिया के उसी लेख के संपादित अंश कृष्ण चरित्र को समझने में मदद करेंगे।