पाप और शोक के दावानल से दग्ध इस जगती तल में भगवान ने पदार्पण किया। इस बात को आज पांच सहस्र वर्ष हो गए। वे एक महान संदेश लेकर पधारे। केवल संदेश ही नहीं, कुछ और भी लाए। वे एक नया सृजनशील जीवन लेकर आए। वे मानव प्रगति में एक नया युग स्थापित करने आए। इस जीर्ण-शीर्ण रक्तप्लावित भूमि में एक स्वप्न लेकर आए।
जन्माष्टमी के दिन उसी स्वप्न की स्मृति में महोत्सव मनाया जाता है। हम लोगों में जो इस तिथि को पवित्र मानते हैं कितने ऐसे हैं जो इस विनश्वर जगत में उस दिव्य जीवन के अमर-स्वप्न को प्रत्यक्ष देखते हैं?