राम भक्त हनुमान जी का नाम ही काफी है संकटों को दूर करने के लिए। सभी देवताओं के प्रिय हनुमानजी के बारे में 10 खास बातें।
1. हनुमान जयंती को उत्तर भारत में चैत्र माह की पूर्णिमा और कार्तिक माह की चतुर्दशी को मनाते हैं जबकि दक्षिण भारत के तमिलानाडु और केरल में मार्गशीर्ष माह की अमावस्या को तथा उड़ीसा में वैशाख महीने के पहले दिन मनाई जाती है। हनुमानजी का जन्म किष्किंधा में मतंग ऋषि के आश्रम में हुआ था। हालांकि कुछ लोग कपिस्थल में उनके जन्म होने की बात कहते हैं। कुछ लोग गुजरात के डांग जिले के अंजनी पर्वत की एक गुफा में जन्म होने की बात कहते हैं।
2. हनुमानजी को एक कल्प तक सशरीर धरती पर रहने का वरदान मिला है। बजरंगबली हनुमानजी को इन्द्र से इच्छामृत्यु का वरदान मिला। श्रीराम के वरदान अनुसार कल्प का अंत होने पर उन्हें उनके सायुज्य की प्राप्ति होगी। सीता माता के वरदान के अनुसार वे चिरंजीवी रहेंगे।
3. श्रीमद भागवत पुराण अनुसार हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। मान्यता है कि हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में गंधमादन पर्वत स्थित है। आज यह क्षेत्र तिब्बत में है।
4. हनुमानजी के अस्त्र-शस्त्रों में 1.खड्ग, 2.त्रिशूल, 3.खट्वांग, 4.पाश, 5.पर्वत, 6.अंकुश, 7.स्तम्भ, 8.मुष्टि, 9.गदा और 10.वृक्ष हैं। हालांकि उनके संपूर्ण अंग-प्रत्यंग, रद, मुष्ठि, नख, पूंछ, गिरि, पादप आदि प्रभु के अमंगलों का नाश करने के लिए एक दिव्यास्त्र के समान है। अस्त्र-शस्त्र के कर्ता विश्वकर्मा ने हनुमानजी को समस्त आयुधों से अवध्य होने का वरदान दिया है। इसलिए उन पर चलाए गए पाशुपत, नारायणास्त्र, और ब्रह्मास्त्र भी बेअसर है।
5. शास्त्रों के अनुसार विद्वान लोग कहते हैं कि सर्वप्रथम रामकथा हनुमानजी ने लिखी थी और वह भी एक शिला (चट्टान) पर अपने नाखूनों से लिखी थी। यह रामकथा वाल्मीकिजी की रामायण से भी पहले लिखी गई थी और यह 'हनुमद रामायण' के नाम से प्रसिद्ध है। इसे दक्षिण भारत में 'हनुमन्नाटक' कहते हैं। उन्होंने इसे लिखकर समुद्र में फेंक दिया था।
6. हनुमानजी मनुष्य समाज की किसी भी जाति से संबंध नहीं रखते हैं। हनुमान का जन्म कपि नामक वानर जाति में हुआ था। लोग उन्हें वनवासी और आदिवासियों का देवता मानते हैं।
7. कहते हैं कि हनुमानजी के 4 गुरु थे जिनसे उन्होंने शिक्षा और विद्या हासिल की थी। पहले सूर्यदेव, दूसरे नारद तीसरे पवनदेव और चौथे मतंग ऋषि।
8. केसरी और अंजना के पुत्र हनुमानजी का पवनदेव ने भी पालन-पोषण किया था। उन्हें रुद्रावतार माना जाता है इसलिए उन्हें शंकरसुमन भी कहते हैं।
9. त्रेतायुग अर्थात रामायण काल में हनुमानजी ने प्रभु श्रीराम की हर रूप में सहायता की थी। द्वापर युग में उन्होंने श्रीकृष्ण सहित अर्जुन और भीम की सहायता की थी। कलिकाल में उन्होंने ही तुलसीदास से रामचरित मानस को लिखवाया और वे अपने भक्तों की हर तर से सहायता करते हैं।
10.हनुमान चाहते तो माता सीता को अकेले ही रावण की अशोक वाटिका से उठाकर ले आते और चाहते तो अकेले ही रावण और उसकी संपूर्ण सेना का ध्वंस कर देते। उन्होंने लंका दहन करके, कई राक्षसों को मारकर और मेघनाद के पुत्र का वध करके यह प्रमाणिक कर दिया था। लेकिन हनुमानजी राम और माता सीता की आज्ञा के बगैर कोई कार्य नहीं करते हैं।