भगवान राम का काल ऐसा काल था जबकि धरती पर विचित्र किस्म के लोग और प्रजातियां रहती थीं, लेकिन प्राकृतिक आपदा या अन्य कारणों से ये प्रजातियां अब लुप्त हो गई हैं। आज यह समझ पाना मुश्किल है कि कोई पक्षी कैसे बोल सकता है। रामायण काल में बंदर, भालू आदि की आकृति के मानव होते थे? इसी तरह अन्य कई प्रजातियां थी, जो मानवों के संपर्क में थीं। आओ जानते हैं ऐसे लोगों के बारे में जो मनुष्य नहीं थे।
1.हनुमान : हनुमानजी को कुछ लोग वानर जाती का मानते हैं तो कुछ का मानना है कि वे मनुष्य ही थे। हालांकि यह शोध का विषय है और रहस्य अभी भी बरकरार है। वाल्मीकि रामायण में इन वानरों का खास जिक्र मिलता है- केसरी, हनुमान, सुग्रीव, बाली, अंगद (बाली का पुत्र), सुषेण वैद्य आदि। यह सभी वानरों की कपि नामक जाती से थे।
2.जटायु और संपाती : माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़। प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे। जटायु तो सीता को रावण से बचाने के चक्कर में शहीद हो गया तो सम्पाती ने समुद्र के पास वानरों को बताया था कि सीता कहां है।
3.जाम्बवंतजी : कुछ लोग कहते हैं कि ऋक्ष नाम की एक जाती थी जो मानव जैसी ही थे लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि वे रीछ ही थे। भालू या रीछ उरसीडे (Ursidae) परिवार का एक स्तनधारी जानवर है। रामायण काल में रीझनुमा मानव भी होते थे? जाम्बवंतजी इसका उदाहण हैं। जाम्बवंत भी देवकुल से थे। निश्चित ही अब जाम्बवंत की जाति लुप्त हो गई है। हालांकि यह शोध का विषय है।
जाम्बवंत को आज रीछ की संज्ञा दी जाती है, लेकिन वे एक राजा होने के साथ-साथ इंजीनियर भी थे। समुद्र के तटों पर वे एक मचान को निर्मित करने की तकनीक जानते थे, जहां यंत्र लगाकर समुद्री मार्गों और पदार्थों का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता था। मान्यता है कि उन्होंने एक ऐसे यंत्र का निर्माण किया था, जो सभी तरह के विषैले परमाणुओं को निगल जाता था। रावण ने इस सभी रीछों के राज्य को अपने अधीन कर लिया था। जाम्बवंत ने युद्ध में राम की सहायता की थी और उन्होंने ही हनुमानजी को उनकी शक्ति का स्मरण कराया था।
4.काकभुशुण्डि : लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरूड़ को सुना दी थी।
5. नन्ही गिलहरी : इसके अलावा रामायण में नन्ही गिलहरी का भी जिक्र आता है। वन में ऐसे ही चलते हुए श्रीराम का पैर एक नन्ही-सी गिलहरी पर पड़ा। उन्हें दुःख हुआ और उन्होंने उस नन्ही गिलहरी को उठाकर प्यार किया और बोले- अरे मेरा पांव तुझ पर पड़ा, तुझे कितना दर्द हुआ होगा न?
गिलहरी ने कहा- प्रभु! आपके चरण कमलों के दर्शन कितने दुर्लभ हैं। संत-महात्मा इन चरणों की पूजा करते नहीं थकते। मेरा सौभाग्य है कि मुझे इन चरणों की सेवा का एक पल मिला। इन्हें इस कठोर राह से एक पल का आराम मैं दे सकी।
प्रभु श्रीराम ने कहा कि फिर भी दर्द तो हुआ होगा ना? तू चिल्लाई क्यों नहीं? इस पर गिलहरी ने कहा- प्रभु, कोई और मुझ पर पांव रखता, तो मैं चीखती- 'हे राम!! राम-राम!!! ', किंतु, जब आपका ही पैर मुझ पर पड़ा- तो मैं किसे पुकारती?
श्रीराम ने गिलहरी की पीठ पर बड़े प्यार से अंगुलियां फेरीं जिससे कि उसे दर्द में आराम मिले। अब वह इतनी नन्ही है कि तीन ही अंगुलियां फिर सकीं। माना जाता है कि इसीलिए गिलहरियों के शरीर पर श्रीराम की अंगुलियों के निशान आज भी होते हैं।
उल्लेखनीय है कि राम सेतु बनाने में गिलहरियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है। सभी गिलहरियां अपने मुंह में मिट्टियां भरकर लाती थीं और पत्थरों के बीच उनको भर देती थीं। इसी तरह क्रौंच पक्षी का भी जिक्र होता है। हालांकि क्रौंच पक्षी की घटना वाल्मीकि और भारद्वाज ऋषि से जुड़ी हुई है। रामायण का पहला श्लोक इसी क्रौंच पक्षी के कारण उपजा था।