Hanuman jayanti janmotsav 2022 चैत्र माह की शुक्ल पूर्णिमा को रामभक्त हनुमान जी का जन्म हुआ था। उनके इस जन्मदिन को कालांतर से जयंती कहते आएं हैं परंतु अब यह कहा जा रहा है कि हनुमानजी के जन्म को जयंती के रूप में नहीं जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाना चाहिए। आखिर क्या है इसके पीछे का तर्क?
सशरीर मौजूद हैं हनुमानजी : दरअसल कहा जा रहा है कि जयंती उसकी मनाई जाती है जिसका की निधन हो गया हो, परंतु हनुमानजी की तो कभी कोई मृत्यु नहीं हुई है। इसीलिए उनकी जयंती नहीं जन्मोत्सव मनाया जाता है।
जयंती उसकी मनाई जाती है जो कि इस सांसार में नहीं है लेकिन हनुमानजी तो आज भी सशरीर मौजूद हैं। उन्हें एक कल्प तक धरती पर ही रहने का वरदान मिला हुआ है। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि भगवान हनुमान को चिरंजीव होने का वरदान भगवान श्री राम और माता सीता से मिला था।
8 चिरंजीवी: हिंदू इतिहास और पुराणों अनुसार ऐसे 8 व्यक्ति हैं, जो चिरंजीवी हैं। यह सब किसी न किसी वचन, नियम या शाप से बंधे हुए हैं और यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। इन 8 व्यक्तियों में परशुराम, राजा बलि, हनुमान, विभीषण, ऋषि व्यास, मार्कण्डेय ऋषि, अश्वत्थामा और कृपाचार्य हैं।
इस संबंध में एक श्लोक भी मिलता है:
अश्वत्थामा बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।
कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥
सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्।
जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।
हालांकि जयंती और जन्मोत्सव का शाब्दिक अर्थ एक ही होता है, परंतु यह कहा जा रहा है कि सभी देवी और देवताओं का जन्मोत्सव या प्रकटोत्सव मनाया जाता है जयंती नहीं। जहां की यह कहने का प्रचलन भी नहीं है। जैसे राम जन्मोत्सव को रामनवमी कहा जाता है। कृष्ण जन्मोत्सव को जन्माष्टमी कहा जाता है। इसी तरह सभी देवी, देवता और भगवानों को जन्मोत्सव को तिथि से जोड़कर ही जाना जाता है।
पुराणों में उल्लेख है कि कलयुग में हनुमान गंधमार्दन पर्वत पर निवास करते हैं। एक कथा के अनुसार जब अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव हिमवंत पार कर गंधमार्दन के पास पहुंचे थे। उस समय भीम सहस्त्रदल कमल लेने गंधमार्दन पर्वत के जंगलों में गए थे, यहां पर उन्होंने भगवान हनुमान को लेटे हुए देखा। इसी समय हनुमान ने भीम का घमंड भी चूर किया था।