एक दिन मारुती अपनी निद्रा से जागे और उन्हें तीव्र भूख लगी... उन्होंने पास के एक वृक्ष पर लाल पका फल देखा। जिसे खाने के लिए वे निकल पड़े दरअसल मारुती जिसे लाल पका फल समझ रहे थे वे सूर्यदेव थे। वह अमावस्या का दिन था और राहु सूर्य को ग्रहण लगाने वाले थे। लेकिन वे सूर्य को ग्रहण लगा पाते उससे पहले ही हनुमान जी ने सूर्य को निगल लिया। राहु कुछ समझ नहीं पाए कि हो क्या रहा है? उन्होने इंद्र से सहायता मांगी। इंद्रदेव के बार-बार आग्रह करने पर जब हनुमान जी ने सूर्यदेव को मुक्त नहीं किया तो, इंद्र ने वज्र से उनके मुख पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव मुक्त हुए।
वहीं इस प्रहार से मारुती मूर्छित होकर आकाश से धरती की ओर गिरते हैं। पवनदेव इस घटना से क्रोधित होकर मारुती को अपने साथ ले एक गुफा में अंतर्ध्यान हो जाते हैं। जिसके परिणामस्वरूप पृथ्वी पर जीवों में त्राहि-त्राहि मच उठती है। इस विनाश को रोकने के लिए सारे देवगण पवनदेव से आग्रह करते हैं कि वे अपने क्रोध को त्याग पृथ्वी पर प्राणवायु का प्रवाह करें। सभी देव मारुती को वरदान स्वरूप कई दिव्य शक्तियाँ प्रदान करते हैं और उन्हें हनुमान नाम से पूजनीय होने का वरदान देते हैं। उस दिन से मारुती का नाम हनुमान पड़ा। इस घटना की व्याख्या तुलसीदास द्वारा रचित हनुमान चालीसा में की गई है -
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।