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'उनकी' लंबी उम्र के लिए...

करवे-सी अखंडता व चंदा-से उजाले की कामना

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-स्वाति शर्म
विश्वास, प्रेम, सृजन और पवित्रता की डोर से बाँधता एक ईश्वरीय बंधन 'विवाह'। कहते भी हैं न कि जोड़ियाँ आसमानों में बनती हैं। इसलिए इस बंधन की पवित्रता भी देवतुल्य है। यह बंधन बिलकुल वैसा ही है जैसा सुखद, अपनेपन और सुरक्षा का अहसास दिलाता कोई बंधन होता है। इसमें समाहित है दोनों बँधे हुए जीवों का परस्पर प्रेम, एक-दूसरे के प्रति विश्वास और नए सृजन की सुंदर व अद्भुत साझेदारी। इसलिए ही तो इस बंधन में भी आनंद है। करवा चौथ इसी बंधन को अटूट रखने की कामना के साथ किया जाता है।

एक स्त्री-पुरुष जब सप्तपदी या सात फेरों के साथ विवाह वचनों को अपनाते हैं, तो कहीं एक अदृश्य शक्ति उनके मन और भावनाओं में भी संबंध स्थापित कर देती है। यही संबंध उन्हें सदैव जोड़े रखता है। यह संबंध किसी एक के ऊपर भार नहीं होता बल्कि दोनों की साझेदारी होता है।

ऐसी साझेदारी जिसमें यदि परेशानी से हलकान हुए पतिदेव को मुस्कान के साथ चाय का प्याला देकर उनकी परेशानियों को दूर भगा देने का विश्वास देने वाला अहसास है तो वहीं दिनभर के कामों के बाद पस्त हुई श्रीमतीजी के कंधे पर सहृदयता व स्नेह का परिचायक हाथ रख उनकी सारी थकान हर लेने वाली प्यारी भावना भी होती है। यही तो वे छोटी-छोटी बातें हैं जो पति-पत्नी के स्त्री व पुरुष से पहले एक इंसान होने की भावना को दर्शाती हैं। ऐसी ही भावनाओं को प्रगाढ़ करता है करवा चौथ का व्रत।

पुराणों के अनुसार कार्तिक वदी की चौथ को यह व्रत रखा जाता है। इस दिन स्त्रियाँ अपने सौभाग्य के लिए गौरी का व्रत कर मिट्टी के करवे से चंद्रमा को अर्घ्‍य देती हैं। पूरे दिन निराहार रहकर पूजन के पश्चात पतिदेव के हाथ से पानी का घूँट पीकर व्रत खोलती हैं। स्त्रियों द्वारा एक-दूसरे को पकवान सहित करवे दिए जाते हैं। इस दिन शाकप्रस्थपुर के वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती की कथा सुनाई जाती है।

घरों में मैदे की पपड़ी, मीठे गुलगुले आदि बनाए जाते हैं। नई-नई बहुओं से लेकर बड़ी उम्र की शादीशुदा स्त्रियाँ इकट्ठी हो एक-दूसरे से करवे बदलती हैं। सुंदर, सलज्ज, मुस्कानों के बीच कई स्त्रियाँ तो चंद्रमा के बाद पति की भी आरती उतारती हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीकों से स्त्रियाँ इस व्रत को मनाती हैं। पंजाब तथा उ.प्र. में इस दिन बहुओं हेतु ससुराल से सरगी आती है। इसमें सामर्थ्य अनुसार कपड़े, गहने, फल, मिष्ठान आदि होते हैं। यह 'सरगी' व्रत के एक दिन पूर्व आती है।

वैसे भी भारतीय संस्कृति का अनूठापन और यहाँ के रीति-रिवाजों के मूल में एक अद्भुत आकर्षण है, जो हमें एक-दूसरे से जोड़ता है। यही कारण है कि ढेर सारे त्योहारों की मीठी परंपरा हमें अपनी जड़ों से अलग नहीं होने देती, चाहे हम कहीं भी रहें। इसका स्पष्ट प्रमाण 'कभी खुशी कभी गम' और 'बागवान' जैसी फिल्मों में भी देखने को मिलता है। या फिर जींस-टॉप के साथ हाथ भर लाल चूड़ियाँ पहने युवतियों या मंदिरों में माथा टेकते नवयुवकों में भी दिखाई देता है। यही तो असली भारत की तस्वीर है।

फिर आज तो करवा चौथ का महत्व इसलिए भी बढ़ गया है कि अब कहीं-कहीं पत्नी अपने 'उन' के लिए और पति भी अपनी 'उन' के लिए यह व्रत रख रहे हैं। यहाँ दोनों एक-दूसरे की लंबी उम्र और अपने रिश्ते में विश्वास के बने रहने की प्रार्थना कर रहे हैं। यही भावना तो चाहिए आज रिश्तों के बीच की दूरियों को कम करने के लिए। तभी तो करवा चौथ को सही रूप में अपना पाएँगे हम।

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