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सौभाग्यवती का सौभाग्य व्रत

हमें फॉलो करें सौभाग्यवती का सौभाग्य व्रत
-अशोक पंवार 'मयंक'
 
यह कार्तिक कृष्ण पक्ष को चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी को किया जाता है। यह स्त्रियों का मुख्य त्योहार है। सौभाग्यवती स्त्रियाँ स्वपति के रक्षार्थ यह व्रत करती हैं तथा रात्रि में शिव, चंद्रमा, स्वामी कार्तिकेय आदि के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओं की पूजा करती हैं।
 
पहले चंद्रमा उसके नीचे शिव तथा कार्तिकेय आदि के चित्र पर दीवार पर पिसे ऐपन से बनाना चाहिए। इस दिन निर्जल व्रत करें। चंद्र दर्शन के बाद चंद्र को अर्घ्य देकर भोजन करना चाहिए। पीली मि‍ट्‍टी की गौरा बनानी चाहिए। कोई-कोई स्त्रियाँ परस्पर चीनी या मिट्‍टी का करवा आदान-प्रदान करती हैं तथा कहानी सुनती हैं।
 
कथा :
एक बार पांडु पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले गए। इधर पांडवों पर अनेक विपत्तियाँ पहले से व्याप्त थीं। इससे शोकाकुल हो द्रौपदी ने कृष्ण का ध्यान किया। भगवान के दर्शन होने पर इन कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा। कृष्ण बोले- हे द्रौपदी ! एक समय पार्वती ने शिव से इसी प्रश्न पर चिह्न लगाया था। तो उन्होंने सभी विघ्नों के नाशक इस 'करवा चौथ' को ही बतलाया था।
 
हे पांचाली द्रौपदी! प्राचीन काल में गुणी व धर्मपरायण एक ब्राह्मण रहता था। उसके चार पुत्र तथा एक गुणवती, सुशील पुत्री थी। पुत्री ने विवाहित होने पर करवा चतुर्थी का व्रत किया, किंतु चंद्रोदय से पूर्व ही उसे क्षुधा ने बाध्य कर दिया, इससे उसके दयालु भाइयों ने छल से पीपल की आड़ में कृत्रिम चाँद बनाकर दिखा दिया। कन्या ने अर्घ्य दे, भोजन किया। भोजन करते ही उसका पति मर गया।
 
इससे दु:खी होकर उसने अन्न-जल छोड़ दिया। उसी रात्रि में इंद्राणी भू-विचरण करने आईं। ब्राह्मण कन्या ने इंद्राणी से अपने दु:ख का कारण पूछा। इंद्राणी बोली- तुम्हें करवा चौथ व्रत में चंद्र दर्शन के पूर्व भोजन कर लेने से यह क‍ष्ट मिला है। तब ब्राह्मण की कन्या ने अंजलि बाँधकर विनय की कि इससे मुक्त होने का कोई साधन बताएँ।
 
इंद्राणी बोली- यदि तुम विधिवत् पुन: करवा चौथ व्रत करो तो निश्‍चित तुम्हारे पति पुनर्जीवित हो जाएँगे।
 
इस रीति से उस कन्या ने वर्षभर प्रत्येक चतुर्थी का व्रत किया तथा पति को प्राप्त किया श्रीकृष्‍ण ने कहा- हे द्रौपदी ! यदि तुम भी इस व्रत को करोगी तो तुम्हारे सभी संकट टल जाएँगे। इस प्रकार द्रौपदी ने इस व्रत को किया तथा पांडव विजयी हुए। अत: सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि और धन-धान्य के ‍इच्छुक को यह व्रत विधिपूर्वक करना चाहिए।
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