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Karva Chauth 2025: करवा चौथ व्रत के 10 आवश्यक कार्य

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WD Feature Desk

, बुधवार, 8 अक्टूबर 2025 (17:09 IST)
Karva Chauth 2025: कार्तिक माह के कृष्‍ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रखती हैं। इस पर यह व्रत 10 अक्टूबर 2025 शुक्रवार को रखा जाएगा। दिल्ली समय के अनुसार चंद्रमा रात्रि 08 बजकर 13 मिनट पर निकलेगा। पूजा का शुभ मुहर्त शाम 06 बजकर 06 मिनट से 07 बजकर 19 मिनट तक रहेगा। करवा चौथ के दिन किए जाने वाले 10 मुख्य कार्य और नियम यहाँ दिए गए हैं, जो व्रत की विधि-विधान को पूरा करते हैं:-
 
1. सरगी: महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर सरगी का अन्न ग्रहण करती हैं जिसमें ड्रायफूड सहित कई खाने की वस्तुएं होती हैं जो उसे उसकी सास देती है। इसके बाद व्रत प्रारंभ हो जाता है।
2. मेहंदी लगाना: करवा चौथ से एक दिन पहले या करवा चौथ वाले दिन मेहंदी लगाई जाती है। राजस्थान में, पैरों तथा हाथों में आलता अथवा महावर लगाने की परंपरा है।
3. निर्जला व्रत: इस दिन महिलाएं सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक निर्जला व्रत रखती हैं। चांद देखकर ही व्रत का पारण होता है।
4. सोलह श्रृंगार: इस दिन महिलाएं अच्छे से सजती और संवरती हैं और पूजा से पूर्व नववधु की तरह 16 श्रृंगार करना होता है।
5. छन्नी चलनी में चांद देखना: महिलाएं चांद निकलने पर छन्नी में चंद्रमा को देखती हैं। चन्द्र दर्शन के पश्चात पति के मुख का दर्शन करती है।
6. चंद्र को अर्घ्य देना: इस दिन महिलाएं चंद्रमा की पूजा करके उन्हें अर्घ्‍य देना अर्थात जल अर्पित करती हैं।
7. पार्वती की पूजा: इस दिन माता पार्वती की पूजा करते हैं।
8. कथा पाठ: इस दिन महिलाएं करवा माता और माता पार्वती की कथा सुननी या पढ़ती हैं।
9. पारण : चंद्र दर्शन के बाद पति अपनी पत्नी को जल ग्रहण कराता है। इसके बाद सभी भोजन करते हैं।
10. बधाई: इसके बाद सभी एक दूसरे को शुभकामनाएं और शुभ संदेश भेजते हैं।
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सूर्योदय से पहले सरगी (Sargi) का सेवन:
व्रत शुरू करने से पहले, ब्रह्म मुहूर्त में (सूर्योदय से पहले) सास द्वारा दी गई सरगी ग्रहण करें। इसमें फल, मिठाई और पौष्टिक भोजन होता है, जिससे दिनभर ऊर्जा बनी रहे।
 
निर्जला व्रत का संकल्प:
सरगी लेने के बाद, पूरे दिन अन्न और जल (निर्जला) न ग्रहण करने का संकल्प लें। यह व्रत पति की लंबी आयु और सौभाग्य के लिए किया जाता है।
 
सोलह श्रृंगार करना:
शाम की पूजा से पहले लाल, पीला या शुभ रंग के वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करें। यह सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। काले या सफेद रंग के वस्त्र पहनने से बचें।
 
पूजा की चौकी तैयार करना:
शाम को शुभ मुहूर्त में पूजा स्थल पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय और गणेश जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही करवा माता का चित्र भी रखें।
 
करवा (मिट्टी का घड़ा) की स्थापना:
मिट्टी के करवे में जल भरकर, उसमें सिक्का डालकर उसे लाल कपड़े से ढक दें। यह पूजा का केंद्रीय पात्र होता है।
 
करवा चौथ की कथा सुनना:
सभी सुहागिन स्त्रियाँ एक साथ बैठकर या अकेले में करवा चौथ की व्रत कथा और आरती सुनें। कथा सुनना इस व्रत का एक अनिवार्य अंग है।
 
करवा माता और शिव परिवार की पूजा:
विधिपूर्वक गणेश जी, शिव-पार्वती की पूजा करें और करवा माता को भोग (नैवेद्य) अर्पित करें। माता पार्वती को सुहाग सामग्री जैसे सिंदूर, रोली, चुनरी आदि चढ़ाएँ।
 
सुहाग सामग्री का दान (बायना निकालना):
पूजा के बाद, कुछ क्षेत्रों में सुहाग की सामग्री, अन्न (गेहूँ/चावल) और मिठाई सास या किसी अन्य सुहागिन स्त्री को दान (बायना) के रूप में देने की परंपरा होती है।
 
चंद्रमा को अर्घ्य देना:
रात में चंद्रोदय होने पर, पहले छलनी से चाँद के दर्शन करें, फिर लोटे के जल से चंद्रमा को अर्घ्य दें और उनसे व्रत की सफलता व पति की दीर्घायु की प्रार्थना करें।
 
पति के हाथों व्रत का पारण:
चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद, छलनी से पति का चेहरा देखें। इसके बाद पति के हाथों से जल पीकर और मिठाई खाकर अपना निर्जला व्रत तोड़ें। व्रत खोलने के बाद सास और बड़ों का आशीर्वाद ज़रूर लें।
 
ध्यान दें: व्रत के दौरान किसी से झूठ न बोलें, वाद-विवाद न करें और नकारात्मक विचार मन में न लाएँ। दिन में सोना भी वर्जित माना जाता है।
 

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