हमारे शास्त्रों में व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। व्रत करने से एक ओर जहां हमारे अभीष्ट की सिद्धि होती है वहीं शारीरिक व मानसिक शुचिता के लिए भी व्रत करना आवश्यक है। व्रत करने से अंत:करण शुद्ध होता है।
हमारे शास्त्रों में अनेकानेक व्रतों का वर्णन है। इसी क्रम में कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला 'करवा चतुर्थी' व्रत हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण व्रत है। जिसमें सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सौभाग्य (पति) की दीर्घायु व आरोग्य के लिए दिवसपर्यंत व्रत रखकर चंद्रोदय के उपरांत चंद्र को अर्घ्य देकर अपने व्रत का पारण करती हैं।
इस व्रत में चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात् चंद्रोदय के समय रहने वाली चतुर्थी ग्रहण की जाती है। शास्त्रानुसार व्रत के आरंभ के साथ ही व्रत का उद्यापन करना भी नितांत आवश्यक है। निश्चित समयावधि में बिना व्रत-उद्यापन किए उस व्रत को निष्फल बताया गया है। किंतु इस वर्ष 'करवा चतुर्थी' के दिन शुक्र का तारा अस्त है इसके कारण इस वर्ष 'करवा-चतुर्थी' व्रत का उद्यापन नहीं हो सकेगा।
इस व्रत के उद्यापन की इच्छा रखने वाली महिलाओं को एक वर्ष की प्रतीक्षा करनी होगी। शास्त्रानुसार किसी भी व्रत का आरंभ एवं उद्यापन गुरु एवं शुक्र के अस्त रहते, मलमास, भद्रा एवं अन्य कुयोग में नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही गुरु व शुक्र के अस्त होने से पूर्व एवं पश्चात् के तीन दिन भी व्रतारंभ व व्रत उद्यापन के लिए वर्जित माने गए हैं। अत: इस वर्ष शुक्रास्त के कारण 'करवा-चतुर्थी' व्रत का उद्यापन नहीं हो सकेगा।
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र