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करवा में चित्रित प्रतीकों को सामान्यः दो श्रेणियों में रखा जाता है। एक अलौकिक और दूसरे इह लौकिक (भौतिक) जगत के प्रतीक। करवा में गौरी चित्रण प्रधान है। वही केंद्र है करवा रखने का। गौरी चिरसुहागिन हैं। उसी से सुहाग लेकर चिरसुहाग की कामना की जाती है।
अलौकिक आकृतियों में सूर्य व चंद्रमा भी प्रमुखता से बनाए जाते हैं। इसके अलावा कृष्ण, शंकर व गणेश को भी परंपरा अनुरूप बनाया जाता है। गौरी के लिए टोंटीदार करवा, पंखा, सीढ़ी, बैठकी मचिया, चटाई, खाट और चप्पल वगैरह भी चित्रित किए जाते हैं। और गौरी की कल्पना और उसका चित्रण मानवरूप में ही तो किया जाता है।
गौरी के लिए सुहाग की वस्तुएँ जैसे चूड़ी, बिंदी, बिछुआ, मेहँदी, महावर आदि भी बनाते हैं। इसके अलावा दूध वाली गाय, करवा या करुआ बेचने वाली कुम्हारिन, महावर लगाने वाली नाइन, चूड़ी पहनाने वाली मनहारिन, सात भाई-भाभी और उनकी इकलौती बहन, उसका वर, तुलसी का गमला आदि भी बनाए जाते हैं। इस प्रकार करवा चौथ की संपूर्ण कहानी को फलक में चित्रित किया जाता है। कुछ क्षेत्रों में भेंट के रूप में दी जाने वाली करवा-पूजन सामग्री को ले जाते हुए भाई का चित्रण भी आम है। करवा देना भाई का दायित्व है।
इस प्रकार विश्वास, परंपरा, सुहाग की अटलता की कामना की यह अभिव्यक्ति के रूप में करवा धरने की यह अनोखी पारंपरिक कला न केवल सदियों से चली आ रही है, बल्कि समय के साथ निखरी भी है।