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भित्ति चित्रों में करवा चौथ

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करवा चौथ व्रत ने भित्ति चित्रों के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है। इसलिए इस व्रत के कलात्मक पक्ष को उजागर करना व्रत के महत्वपूर्ण पक्ष को जानने के समकक्ष है। भित्ति चित्रों में करवा चौथ की पूजन की जो रूपरेखा दी गई है, वह मन मोह लेती है।

* दीवार या आंगन में जहां से चंद्र उदय होने के बाद स्पष्ट रूप से दिखाई देता हो, उस स्थान पर यह रूपरेखा बनाई जाती है।

* इसमें सबसे ऊपर दो स्वस्तिक के निशान बनाए जाते हैं और उनके ऊपर दोनों ओर सूर्य या चंद्र की आकृतियां रहती हैं।

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* इसके नीचे फिर बाईं ओर स्वस्तिक का चित्र और दाईं ओर करवे के चित्र बनाए जाते हैं।

* फिर नीचे पशु-पक्षी, गृह प्रवेश द्वार की आकृति रहती है और एक स्त्री या कन्या का चित्र रहता है।

* नीचे की ओर कई तरह के रेखाचित्र रहते हैं। पूरा रेखाचित्र करवे का एक तंत्र लगता है।

* कहीं-कहीं आंगन को गोबर से लीपकर यह चित्र बनाने की प्रथा है। इसी स्थान पर ताम्र पात्र में जल भर कर या जल कलश भी रखा जाता है।

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