Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

अमिताभ अंकल की चिठ्ठी

अपने मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा

हमें फॉलो करें अमिताभ अंकल की चिठ्ठी
webdunia
IFMIFM
दोस्तो,
आज जैसे ही पढ़ने के लिए बोर्डिंग में जाने की बात आती है मैं देखता हूँ कि बहुत से बच्चे उदास हो जाते हैं। ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए। मैं तो नैनीताल के शेरवुड स्कूल के अपने दिनों को आज भी याद करता हूँ।

और बच्चो, मैं जो कुछ भी हूँ वह स्कूल के दिनों में सीखी गई बातों से ही बना हूँ।

जब हम छोटे होते हैं तो चीजों को जल्दी-जल्दी सीखते हैं, जबकि बाद में कुछ भी सीखने में बहुत दिक्कत होती है। इसलिए अभी आप तैरना, घुड़सवारी, शूटिंग, क्विज हल करना, ड्रामा करना, क्रिकेट खेलना सभी कुछ करो। इससे आपसीखते रहते हो। मैं एक अच्छा एथलीट रहा हूँ और 100, 200, 400 मीटर के साथ लंबी कूद में भी मैंने कमाल दिखाया है।

मुझे याद है जब पहली बार मैं स्कूल में बॉक्सिंग रिंग में उतरा था तो पहली बार में ही मैंने कप जीता था। उस समय बाबूजी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में थे। मैंनेउन्हें अपना ग्रुप फोटो भेजा। बाबूजी ने इसके बदले मुझे बॉक्सिंग पर एक बढ़िया किताब भेजी। इस तरह देखा जाए तो बोर्डिंग स्कूल में आप अनुशासन सीखते हैं और यह आपको अच्छा इंसान बनाता है।

बच्चो, आपको अपने स्कूल की एक और बात बताता हूँ। यह स्कूल में मेरा दूसरा साल था। पहले साल में ड्रामा में बेस्ट एक्टर का अवार्ड जीत चुका था और दूसरे साल के ड्रामा में अगर मैं जीत जाता तो यह पहली बार होता जबकि एक एक्टर ने लगातार दो साल कप जीता हो। मैं इसलिए खुश था क्योंकि इस ड्रामा को देखने सब बच्चों के माता-पिता भी आते हैं और इसलिए माँ-बाबूजी भी आने वाले थे
'जीवन में अपने मन का हो तो अच्छा है, अपने मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा'। कई बार हम जैसा चाहते हैं वैसा नहीं होता पर इससे निराश नहीं होना। सब भगवान के हाथ में है और भगवान किसी का बुरा नहीं करते हैं।
webdunia


एक दिन हम रिहर्सल कर रहे थे और मुझे थोड़ी ठंड-सी लगी। डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि मुझे खसरा हो गया है। और मुझे दूसरों से अलग कमरे में आराम करना होगा। मैं बहुत दुःखी हुआ। अब मैं प्ले में भी हिस्सा नहीं ले सकता था। जब स्कूल में प्ले का समय हुआ तो मैं स्कूल के हॉस्पिटल में था।

वहाँ से मैंने खिड़की का परदा हटाया तो वह जगह दिखने लगी, जहाँ प्ले होने वाला था। मैं उदास होकर बैठगया। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। तभी कमरे में कोई आया। वे मेरे बाबूजी थे। वे दो घंटे के लिए अनुमति लेकर आए थे। उन्होंने मुझे बातचीत में लगाया ताकि मेरा ध्यान ड्रामा की तरफ नहीं जाए।

उन्होंने तब मुझे दो लाइनें कही थीं कि 'जीवन में अपने मन का हो तो अच्छा है, अपने मन का ना हो तो ज्यादा अच्छा'। कई बार हम जैसा चाहते हैं वैसा नहीं होता पर इससे निराश नहीं होना। सब भगवान के हाथ में है और भगवान किसी का बुरा नहीं करते हैं। यह बात मुझे आज भी याद है।

मैंने हमेशा अपने पिताजी का कहना माना। उनसे चीजें सीखीं और वे आज भी काम आ रही हैं। आप भी अपने माता-पिता की बात ध्यान से सुनना और इस उम्र में जबकि आप स्कूल में खूब खेलो और खूब मस्ती करो।
आपका अमिताभ बच्चन

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi