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चश्मा या गाजर?

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सीमा पांडे

प्यारे बच्चों,

नए वर्ष का संकल्प ले लिया कि नहीं? अब तुम कहोगे कि दीदी तो पीछे ही पड़ गई। पर अगर किसी चीज से फायदा होता हो तो पीछे पड़ने में क्या हर्ज है भला?

अब चिंटूजी ने तो नए साल का प्रण ले भी लिया और उनकी अपने दोस्त से सुलह-सफाई भी हो गई। इधर उनके छुटके भैय्या ने कोई संकल्प नहीं लिया ऊपर से उनका मूड भी उखड़ा हुआ रहा। अरे भाई, उनकी आँखों पर मोटा सा चश्मा जो चढ़ने जा रहा है, बस उस बात को लेकर हैरान हैं। न पढ़ने में मन लग रहा है न खेलने में। चिंटूजी ने सारी बातें मुझे बताई फिर यह भी बताया कि डाक्टर अंकल पहले भी छुटके को कह चुके हैं कि गाजर-पपीता वगैरह खाया करो लेकिन छुटके महाराज तो इन चीजों से जैसे दूर ही भागते हैं। आखिर एक दिन यह हुआ कि चश्मा चढ़ने की नौबत आ गई।

अब चिंटूजी तो डर के मारे गाजर पपीता और जो भी चीजें माँ देती हैं खाने लगे हैं पर छुटके तो इसी गम में बैठे हैं कि चश्मा लग जाएगा। कल चिंटूजी ही उनको मना-समझाकर मेरे पास लाए थे। इसके पहले मैंने डाक्टर अंकल से बात की। फिर छुटके को डॉक्टर अंकल की बात बताई। हाँ-हाँ तुमको भी बताती हूँ..डाक्टर अंकल ने यह कहा कि अभी चश्मा जरूर लगेगा लेकिन जब इस तरह की चीजें खाने लगोगे तो धीरे से नंबर कम हो जाएगा और फिर धीरे से चश्मा छूट भी जाएगा। मगर...शर्त यह है कि यह सब खाते रहना पड़ेगा। तो तुमने क्या सीखा? क्या चाहते हो? चश्मा या गाजर-पपीते का स्वाद! चाहो तो नए वर्ष का यह संकल्प भी ले सकते हो।

तुम्हारी दीदी
सीमा

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