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खेलो होली

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सीमा पांडे

प्यारे बच्चों,

धूम मचाती हुई होली फिर से एक बार आ गई है। ठंडी हवाएँ, सुहाना मौसम, हल्के-गहरे रंग और हँसी ठिठोली..कितना कुछ है इस त्योहार में। तुम भी खेलते हो न होली? तुम्हारा जवाब शायद हाँ हो लेकिन हमारे चिंटूजी के चचेरे भाई छुटकू अभी-अभी उनके घर आए हैं। तुम कहोगे उनसे हमारा क्या लेना-देना, हाँ-हाँ भई बता रही हूँ।

हुआ यह कि चिंटूजी बहुत खुश..अब होली आ रही है और छुटकू के साथ मिलकर खूब धमाल करेंगे। पर छुटकूजी तो निकले बिदकूजी.. यानी वे तो होली के नाम से ही नाक-भौंह सिकोड़ने लगे। चिंटूजी ने कहा कि हम तो खेलेंगे तो वो गुस्सा हो गए और रोने भी लगे।

उनको लेकर चिंटूजी मेरे पास आए फिर जब बात पता चली तो मैंने सोचा कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। तभी मैंने पास रखे गिलास से पानी लेकर चिंटूजी पर छिड़क दिया पहले वो बोले अरे दीदी क्या करती हो? फिर बदले में वो भी मेरे ऊपर पानी छिड़कने लगे। सभी हँस रहे थे, मेरा ध्यान छुटकूजी की तरफ था। वो भी बहुत मजे लेकर हँस रहे थे।

मैंने कहा-'क्यों छुटकूजी आया न मजा?' तो छुटकूजी ने हाँ में सिर हिलाया। 'बस ये ही तो है होली का त्योहार इसमें डरने और रुठने की कौन सी बात है भला?' मेरी बात सुनकर प्यारे से छुटकू शरमा गए और फिर जोर से बोले-'मैं होली पर चिंटू को बहुत रंगूँगा।' मैंने कहा-'ये बात!' अब तुम बोलो यदि होली खेलने से घबरा रहे हो बिल्कुल मत डरना और खूब मजा लेना।

तुम्हारी दीदी
सीमा

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