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मर्फी का सच

संपादक की चिट्ठी

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आजकल यह सीख जरा कम ही सुनने को मिलती है कि सदा सच बोलो। तुम्हें भी कई बार यह सुनना शायद ही पसंद हो। इस बार हमने सोचा था कि गाँधीजी की 60 वीं पुण्यतिथि के बहाने तुम्हें यह बताएँगे। इससे हमें कोई रोक नहीं सकता था- न नेता न तुम्हारे चंगु-मंगु।

लेकिन गणतंत्र दिवस की छुट्टी के कारण स्पेक्ट्रम का निकलना रुक गया और जो उपदेश तुम तक नहीं पहुँचने का 0.1 पर्सेंट चांस था वह सही हुआ। ये है मर्फी का नियम। किसी अच्छी बात के गड़बड़ होने की जरा भी संभावना हो तो वह होकर रहेगी। इस मजेदार नियम के बारे में आगे के पन्नो पर पढ़ो।
  मर्फी का कहा सिर्फ मजा लेने की बात नहीं है। सच बोलने के दो फायदे हैं। एक तो वह जो सत्यमेव जयते में है। दूसरा हमने जाने -अनजाने में क्या-क्या बोला है ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती।      


मर्फी का कहा सिर्फ मजा लेने की बात नहीं है बल्कि पहले से यह सोचने की सीख है कि गलती कहाँ-कहाँ हो सकती है और उससे बचने का रास्ता पहले से ही ढूँढ रखना चाहिए।

तो, सच बोलने के दो फायदे हैं। एक तो वह जो सत्यमेव जयते में है। दूसरा हमने जाने -अनजाने में क्या-क्या बोला है ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

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