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कुक कुक

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चक्की चलती है कुक कुक कुक
आटा पिसता घर घर घर
आलम जी आटा पिसवाते
इस चक्की पर ही जाकर

जैसे कोयल कूका करती
चक्की कुक कुक गाती है
मगर रात होने पर चक्की
थक कर के सो जाती है।

में मे
बकरी दूध नहीं देती है
में में में में करती है
बकरी वाला उसे मारता
बकरी काफी डरती है।

घास नहीं दी, दिया नहीं कुछ
चरने को भी गई नहीं
ऐसा बकरी वाला होगा
क्या कोई भी और कहीं

कितनी सुंदर है यह बकरी
जब यह आएगी चरकर
बकरी वाले, तुम दुह लेना
इससे दूध बाल्टीभर।

- (दोनों कविताएँ) डॉ. श्रीप्रसाद, वाराणसी

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