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क्रिकेट पर कविता : अम्मू ने फिर छक्का मारा

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

गेंद गई बाहर दोबारा,

अम्मू ने फिर छक्का मारा।

गेंद आ गई टप्पा खाई।

अम्मू ने की खूब धुनाई।

कभी गेंद को सिर पर झेला,

कभी गेंद की करी ठुकाई।

गूंजा रण ताली से सारा।

अम्मू ने फिर छक्का मारा।

कभी गेंद आती गुगली है।

धरती से करती चुगली है।

कभी बाउंसर सिर के ऊपर,

बल्ले से बाहर निकली है।

अम्मू को ना हुआ गवारा।

अम्मू ने फिर छक्का मारा।

साहस में न कोई कमी है।

सांस पेट तक हुई थमी है।

जैसे मछली हो अर्जुन की,

दृष्टि वहीं पर हुई जमी है।

मिली गेंद तो फिर दे मारा।

अम्मू ने फिर छक्का मारा।

कभी गेंद नीची हो जाए।

या आकर सिर पर भन्नाए।

नहीं गेंद में है दम इतना,

अम्मू को चकमा दे जाए।

चूर हुआ बल्ला बेचारा।

अम्मू ने जब छक्का मारा।

सौ रन कभी बना लेते हैं।

दो सौ तक पहुंचा देते हैं।

कभी कभी तो बाज़ीगर से,

तिहरा शतक लगा देते हैं।

अपने सिर का बोझ उतारा।

अम्मू ने फिर छक्का मारा।


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