कोयल काली
कोयल रानी-कोयल काली
तुम तो हो बड़ी सयानी
मेरे पेड़ के जामुन खा जाती
हाथ न मेरे आती हो
दूर पेड़ पर जाकर तुम
गाना वहाँ सुनाती हो
सपने
दिन में मुझको सपने आते
वंडरलैंड की सैर कराते
खूब हँसाते-खूब डराते
चौंकाकर मुझे उठाते
बाय-बाय कर रात को आते
दोनों कविताएँ शैलेन्द्र चौहान
कछुआ जल का राजा है
कितना मोटा ताजा है
हाथ निकालो कूदेगा
बाहर निकालो ऊबेगा
सबको डाँट लगाएगा
घर का काम कराएगा
बच्चों के संग खेलेगा
पूरी मोटी बेलेगा
चाट पापड़ी खाएगा
ऊँचे सुर में गाएगा
- राजीव कृष्ण सक्सेना
एक नाव
थोड़ा पानी टपका ज्यों
नाव बनाई मैंने त्यों
नाव में बैठा मेरा भालू
नाम था उसका कल्ला कालू
नाव उछलती जाती थी
लहर-लहर लहराती थी
गड्ढा एक बड़ा सा आया
नाव में मेंढक भी चढ़ आया
खूब मजे से नाव चली
देखे पूरा गाँव चली
ऐसी नाव बनाओ तुम
बारिश में इतराओ तुम