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मटके

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हमें फॉलो करें मटके नन्ही दुनिया कविता
गोविंद सेन

बाजारों में छाए मटके
बहुत दूर से आए मटके
गोरे मटके, काले मटके
अपने देखे-भाले मटके
देशी फ्रिज कहलाते हैं
ठंडा पानी पिलवाते हैं
गर्मी में ही आते मटके
जल की महिमा गाते मटके
गर्मी से लोहा लेते हैं
कूल सभी को कर देते हैं
अंगारों पर पके हैं मटके
तभी तो कुंदन बने हैं मटके
नीम की मीठी छाँव हैं मटके
पानी का इक गाँहैमटक


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