रात चली कल तेज हवा
मुझे तो भैया कुछ न पता
पूछो उससे जिसने देखी
वो ही कहेगा आँखोंदेखी
मैं तो खेल में खोया था
या फिर घर में सोया था
मैंने देखी नहीं हवा
मुझे तो भैया कुछ न पता
- संदीप आचार्य, इंदौर
मामा के गाँव
आओ चलें मामा के गाँव
गाँव में पेड़ों की छाँव
गाँव में रहती मेरी नानी
रोज सुनाती एक कहानी
जहाँ नदी है, नाव है
कौए की काँव-काँव है,
गाड़ी का न शोर है
ताजी हवा का जोर है।
लोग चलते अपने पाँव
आओ चलें मामा के गाँव
आसपास खेत हैं
नदी किनारे रेत है
मिट्टी के मकान हैं
मामा की दुकान है
नहीं किसी में भेदभाव
आओ चलें मामा के गाँव
- अद्वैत शर्मा