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बाल साहित्य : सबसे छोटा होना

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

, सोमवार, 22 सितम्बर 2014 (11:39 IST)
मम्मी पापा का तो है यह,
रोज रोज का रोना।
 
कभी हुई बिस्तर में सू सू,
डांट मुझे पड़ती है।
बिना किसी की पूंछतांछ मां,
मुझ पर शक करती है।
मैं ही क्यों रहता घेरे में,
गीला अगर बिछौना।
 
चाय गिरे या लुढ़के पानी,
मैं घोषित अपराधी।
फिर तो मेरी डर के मारे,
जान सूखती आधी।
पापा के गुस्से के तेवर,
मुझको पड़ते ढोना।
 
दिन भर पंखे चलते रहते,
बिजली रहती चालू।
दोष मुझे देकर सब कहते,
यह सब करता लालू।
बहुत कठिन है भगवन घर में,
सबसे छोटा होना।
 

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