भारतमाता, अंधियारे की, 
	काली चादर में लिपटी थी।
	थी, पराधीनता की बेड़ी,
 
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	उनके पैरों से, चिपटी थी। 
	 
	था हृदय दग्ध, धू-धू करके,
 
									
										
								
																	
	उसमें, ज्वालाएं उठती थीं।
	भारत मां के, पवित्र तन पर,
	गोरों की फौजें, पलती थीं।
 
									
											
									
			        							
								
																	
	 
	गुजरात राज्य का, एक शहर,
	है जिसका नाम पोरबंदर।
	उस घर में उनका जन्म हुआ,
 
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	
	था चमन हमारा धन्य हुआ।
	 
	दुबला-पतला, छोटा मोहन,
	पढ़-लिखकर, वीर जवान बना।
 
									
					
			        							
								
																	
	था सत्य, अहिंसा, देशप्रेम,
	उसकी रग-रग में, भिदा-सना।
	 
 
									
					
			        							
								
																	
	उसके इक-इक आवाहन पर,
	सौ-सौ जन दौड़े आते थे।
	सत्य-अहिंसा दो शब्दों के,
 
									
					
			        							
								
																	
	अद्भुत अस्त्र उठाते थे।
	 
	गोरों की, काली करतूतें,
 
									
					
			        							
								
																	
	जलियावाले बागों का गम।
	रह लिए गुलाम, बहुत दिन तक,
	अब नहीं गुलाम रहेंगे हम।
 
									
					
			        							
								
																	
	 
	जुलहे, निलहे, खेतिहर तक,
	गांधी के पीछे आए थे।
	डांडी, समुद्र तट पर आकर,
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	सब अपना नमक बनाए थे।
	 
	भारत छोड़ो, भारत छोड़ो,
	हर ओर, यही स्वर उठता था।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	भारत के, कोने-कोने से,
	गांधी का नाम, उछलता था।
	 
	वह मौन, 'सत्य का आग्रह' था,
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	जिसमें हिंसा, और रक्त नहीं।
	मानवता के, अधिकारों की,
	थी बात, शांति से कही गई।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	गोलों, तोपों, बंदूकों को,
	चुप सीने पर, सहते जाना।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	अपने सशस्त्र दुश्मन पर भी,
	बढ़कर आघात नहीं करना। 
	 
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	सच की, ताकत के आगे थी,
	तोपों की हिम्मत हार रही।
	सच की ताकत के, आगे थी,
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	गोरों की सत्ता, कांप रही।
	 
	हट गया ब्रिटिश ध्वज अब फिर से,
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	आजाद तिरंगा लहराया।
	अत्याचारों का, अंत हुआ,
	गांधी का भारत हर्षाया।
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	साभार - बच्चों देश तुम्हारा