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पर्यावरण पर कविता : आओ पेड़ लगाएं...

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- प्रभात गुप्त


 
बहुत लुभाता है गर्मी में,
अगर कहीं हो बड़ का पेड़।
निकट बुलाता पास बिठाता
ठंडी छाया वाला पेड़।
 
तापमान धरती का बढ़ता
ऊंचा-ऊंचा, दिन-दिन ऊंचा
झुलस रहा गर्मी से आंगन
गांव-मोहल्ला कूंचा-कूंचा।
 
गरमी मधुमक्खी का छत्ता
जैसे दिया किसी ने छेड़।
 
आओ पेड़ लगाएं जिससे
धरती पर फैले हरियाली।
तापमान कम करने को है
एक यही ताले की ताली
 
ठंडा होगा जब घर-आंगन
तभी बचेंगे मोर-बटेर
 
तापमान जो बहुत बढ़ा तो
जीना हो जाएगा भारी
धरती होगी जगह न अच्‍छी
पग-पग पर होगी बीमारी
 
रखें संभाले इस धरती को
अभी समय है अभी न देर।

साभार- देवपुत्र 

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