कोयल अब कूं-कूं नहीं करती,
गौरेया भी फुदकती नहीं दिखती।
न ही सुनाई देती मैना की,
मनमोहक बातें।
बुलबुल के चुलबुलेपन की,
केवल रह गई हैं यादें।
मिट्ठू अब मीठी बातें,
नहीं सुनाते हैं।
मोर तो अब सपने में भी,
नहीं आते हैं।
मां तुम बताओ ना
तुम कब तक इनकी,
कहनाइया सुनाओगी?
वास्तविकता से कब मेरा,
परिचय कराओगी?
क्या ये अब केवल,
कहानी के पात्र हैं।
या फिर पूर्णिमा के चांद हैं,
और कोई बात बीती हुई बात है।
इस हकीकत को मुझे,
समझाओ ना।