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हिन्दी कविता : हिन्दोस्तां हमारा...

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उमाशंकर 'मनमौजी' 
सुनाता एक किस्सा सुनो मेरे नगर में,
तालाब में था रहता मेंढक एक प्यारा।
दोस्ती उसकी हो गई इक बगुले से वहीं,
बगुला नित आता खाने को मछली-चारा।।
 
बगुले से मेंढक ने एक दिन सुबह बोला,
'कुएं का मेंढक' कह सब देते मुझे ताना।
दुनिया चलो घुमाओ बिठा लो पीठ अपनी,
धरती का ओर-छोर मुझे उड़कर दिखाना।। 
 
बगुले ने कहा किंतु उछलते हो तुम बहुत,
खुशी के मारे नहीं तुम पीठ से उछलना।
मेंढक को लिए आसमान उड़ चला बगुला,
घूम रहे देश-विदेश वाह-वाह क्या कहना।।
 
बगुला पूछा मेंढक अब तुमको ऊपर से,
कैसा लग रहा है इस धरती का नजारा?
'मनमौजी' तभी मेंढक यूं बगुले से बोला-
'सारे जहां से अच्‍छा, हिन्दोस्तां हमारा।' 
 
साभार - देवपुत्र 

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