आसमान में उड़े बहुत हैं,
सागर तल से जुड़े बहुत हैं।
किंतु समय अब फिर आया है,
हमको धरती चलना है।
सोने जैसी खूब चमक है,
बिजली-सी हर और दमक है।
किंतु बड़ों ने समझाया है,
भट्टी में तपकर गलना है।
फैले चारों ओर बहुत हैं,
तन-मन से पर सब आहत हैं।
बिखर-बिखरकर टूट रहे हैं,
सांचे में गढ़कर ढलना है।
बोतल वाला दूध पिलाया,
चाउमिन पिज्जा खिलवाया।
यह सब कुछ अब नहीं सुहाता,
मां के आंचल में छुपना है।
नकली ज्यादा खिले-खिले हैं,
असली तो मुरझाए पड़े हैं।
हरे-भरे पौधों पर लगकर,
बनकर फूल हमें खिलना है।