क्यों करते हो बाबा उधम,
नहीं बैठते हो चुपचाप।
अपने कमरे में दादाजी,
पेपर पढ़ते होकर मौन।
दादीजी चिल्लातीं चुप रह,
जब बेमतलब बजता फोन।
शोर-शराबा, हल्ला-गुल्ला,
उनको लगता है अभिशाप।
उछलकूद या चिल्ल-चिल्लपो,
पापा को भी लगे हराम।
गुस्से के मारे कर देते,
चपत लगाने तक का काम।
भले बाद में बहुत देर तक।
करते रहते पश्चाताप।
पर मम्मी कहतीं हो-हल्ला,
ही तो है बच्चों का खेल।
उन्हें भली लगती जब चलती,
छुक-छुक-छुक उधम की रेल।
उन्हें बहुत भाते बच्चों के,
धूम-धड़ाकों के आलाप।