शरद पूर्णिमा पर हाइकू रचना : चांद...
चांद सी गोल
गरीब की रोटियां
थाली में तारे।
चांद किनारे
सुनहरे सपने
बुनने तो दो।
चांद-चकोरी
कहकर बतियां
बहलाओ ना।
चांद छत पे
पर तुम न मिले
कल का वादा।
छुपता चांद
घूंघट में चेहरा
दीदार तेरा।
ईद का चांद
चिलमन से झांका
प्यारा चेहरा।
मन का चांद
अनंत आसमान
उड़ता पंछी।
शुभ्र धवल
उज्ज्वल प्रांजल
शशि नवल।
चांद-सी बिंदी
सुहागन के माथे
पिया का संग।
चांद निकला
पर तुम न आए
उदास रात।
चांद का दाग
मुख पर ढिटोना
कित्ता सलोना।
नीरज निशा
पिया गए विदेश
बैरी निंदिया।
चांद-सी तुम
बिखेरती चांदनी
महकी रात।
तुम्हें क्या कहूं
चौदहवीं का चांद
या आफताब।
चंदा रे चंदा
संदेशा उन्हें देना
पिया बावरी।
ओ चंदा मामा
मुनिया के खिलौने
साथ में लाना।
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