देश, मेरे देश,
तेरा फूल जैसा नाम।
याद करते हैं तुझे हम,
सुबह दुपहर शाम।।
जब हवा चलती बसंती,
यही कहते हैं।
इंद्रधनुषी इस हवा में,
हमीं रहते हैं।।
धूल में भी यहां मिलता है,
हमें विश्राम।
देश, मेरे देश,
तेरा फूल जैसा नाम।।
धूप देह दुलारती है,
या तपाती है।
आग जैसी धूप भी यह हमें भाती है।
कालिदास, कबीर,
तुलसी का, यही है धाम।
देश, मेरे देश,
तेरा फूल जैसा नाम।।
है बड़ी दुनिया,
मगर है कौन सा वह देश।
कई रंगों के मिले हों,
जिसे सुंदर वेष।।
नाम ही सुनकर हमें,
मिलता सदा आराम।
देश, मेरे देश,
तेरा फूल जैसा नाम।।
चांदनी, चंदा, सितारे,
खुशी देते हैं।
सूर्य लाते रोज दिन,
बस अर्घ्य लेते हैं।।
देश ही संकल्प अपना,
देश ही है काम।
देश, मेरे देश,
तेरा फूल जैसा नाम।।