- राजेन्द्र निशेश
सुंदर, शांत सवेरा जागा,
रवि किरणें मुस्काईं।
इन्द्रधनुषी पंख फैलाए,
तितली रानी आई।
हरी भीगी लताएं चहकी,
ओस ने ली विदाई।
भंवरों की गुनगुन को सुनकर,
कली-कली हरषाई।
कोयल गाती निज मस्ती में,
चिड़िया चिहुक लगाई।
बैठ पेड़ पर फल हैं खाते,
हरियल मिट्ठू भाई।
कल-कल धारा बहती सरिता,
हर्षित धरा नहाई।
आनंदित करती प्रकृति ने,
ममता सकल लुटाई।
साभार - देवपुत्र