आज गए थे पिकनिक में हम,
नदी व्यारमा तीरे।
नदी किनारे घूम रहे थे,
हम सब धीरे-धीरे।
नीले रंग की नदी फुदकती,
पत्थर चट्टानों में।
और फुसफुसाकर कहती थी ,
वह तट के कानों में।
'मेरे भीतर छुपे हुए हैं,
ढूंढो आकर हीरे'।
शांत किनारों पर पेड़ों की,
जल में थी परछाईं।
खेल रहे थे डाली पत्ते,
जैसे चाईं-माईं।
एक तरफ थे पड़े रेत के,
ढेरम-ढेर जखीरे।
सर-सर-सर-सर बहता पानी,
सबसे कहता जाता।
अविरल चलने वाला ही तो,
मंजिल तक जा पाता।
हम भी चलते रहें निरंतर,
बाधाओं को चीरे।