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चींटी रानी पर कविता : चिंगारी

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

सिर पर टोपी आंखों पर चश्मा,
हाथों में मोबाइल।
चींटी रानी चली ठुमककर,
पैरों में थी पायल।
 

 
तभी अचानक बीच सड़क पर,
बस उनसे टकराई।
डर के मारे वहीं बीच में तीन,
पल्टियां खाईं।
 
थर-थर, थर-थर लगी कांपने,
बस अब डर के मारे।
उतर-उतरकर बाहर आए,
तभी मुसाफिर सारे।
 
हाथ जोड़कर सबने माफी,
मिस चींटी से मांगी।
तब जाकर मिस चींटीजी ने,
क्रोध मुद्रा त्यागी।
 
बस से बोली आगे से वह,
बीच राह न आए।
अगर दिखूं मैं कहीं सामने,
राह छोड़ हट जाए।
 
नहीं आंकना छोटों को भी,
कमतर मेरे भाई।
एक जरा सी चिंगारी ने,
अक्सर आग लगाई।

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