पालने में लेटे एक नन्हे से भूखे शिशु पर एक बालगीत
भूख-भूख लगी,
जोरों की भूख लगी।
रोई-चिल्लाई भी,
लोरी-सी गाई भी।
हाथों से पलने की,
गोटी खड़काई भी।
गुस्से में चाटी है,
मुट्ठी तक थूक लगी।
कहां गए चेहरे सब,
ओझल हैं मोहरे सब।
अम्मा के, दादी के,
कान कहां ठहरे सब?
सूरज चढ़ आया है,
खिड़की की धूप लगी।
कितनी चिल्लाऊं मैं,
किस पर झल्लाऊं मैं।
लगता है रो-रोकर,
थककर सो जाऊं मैं।
मेरी सिसकी भी क्या,
कोयल की कूक लगी?