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बाल कविता : चंद्र ग्रहण

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

, बुधवार, 25 जून 2025 (16:10 IST)
बहुत दिनों से सोच रहा हूं,
मन में कब से लगी लगन है।
आज बताओ हमें पिताजी,
कैसे होता सूर्य ग्रहण है।
 
कहा पिताजी ने प्रिय बेटे,
तुम्हें पड़ेगा पता लगाना।
तुम्हें ढूंढ़ना है सूरज के,
सभी ग्रहों का ठौर ठिकाना।
 
ऊपर देखो नील गगन में,
हैं सारे ग्रह दौड़ लगाते।
बिना रुके सूरज के चक्कर‌
अविरल निश दिन सदा लगाते।
 
इसी नियम से बंधी धरा है,
सूरज के चक्कर करती है।
अपने उपग्रह चंद्रदेव को,
साथ लिये घूमा करती है।
 
चंद्रदेव भी धरती मां के,
लगातार घेरे करते हैं।
धरती अपने पथ चलती है,
वे भी साथ‌ चला करते हैं।
 
कभी कभी चंदा सूरज के,
बीच कहीं धरती आ जाती।
धरती की छाया के कारण,
धूप चांद तक पहुंच न पाती।
 
इसी अवस्था में चंदा पर,
अंधकार सा छा जाता है।
समझो बेटे इसे ठीक से,
चंद्र ग्रहण यह कहलाता है।
 
(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)
 

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