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बालगीत : झूठे-मक्कारों को दंड...

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव

मक्खीजी की कक्षा में जब,
मच्छर आया लेट।


 
जोर-जोर से चिल्लाया था,
पकड़े अपना पेट।
 
दर्द हो रहा मैडम मेरे,
आज पेट में भारी।
इस कारण से लेट हो गया,
वेरी-वेरी सॉरी।
 
मक्खीजी ने कान पकड़कर,
सिर तक उसे उठाया।
बोली, झूठ बोलने में तू,
बिलकुल न शरमाया।
 
सुबह राह में मैंने देखा,
था तुमको गपियाते।
तिलचट्टी के साथ पकौड़ी,
आलू-छोले खाते।
 
ऐसा कहकर मक्खीजी ने,
मुर्गा उसे बनाया।
बड़ी जोर से फिर पीछे से,
डंडा एक जमाया।
 
झूठे-मक्कारों को ऐसा,
दंड दिया जाता है।
ऐसा करने से ही जग में,
सदाचार आता है।

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