Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

आम पर रसीली मधुर कविता : रसभरे आम

Advertiesment
हमें फॉलो करें poem on mango
webdunia

प्रभुदयाल श्रीवास्तव

रसभरे आम कितने मीठे


 
पत्तों के नीचे लटक रहे
आंखों में कैसे खटक रहे
 
इन चिकने सुंदर आमों पर
पीले रंग कैसे चटक रहे
 
सब आने जाने वालों का
यह पेड़ ध्यान बरबस खींचे
 
रसभरे आम कितने मीठे
 
मिल जाएं आम यह बहुत कठिन
पहरे का लठ बोले ठन-ठन
 
रखवाला मूंछों वाला है
मारेगा डंडे दस गिन-गिन
 
सपने में ही हम चूस रहे
बस खड़े-खड़े आंखें मीचे
 
रसभरे आम कितने मीठे
 
पापा के ठाठ निराले थे
बचपन के दिन दिलवाले थे
 
उन दिनों पके आमों पर तो
यूं कभी न लगते ताले थे
 
खुद बागवान ही भर देते
थे उनके आमों से खींसे
 
रसभरे आम कितने मीठे। 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

रिमझिम बारिश पर कविता : बादल