- राजेन्द्र निशेश
पतझड़ की हो गई बिदाई,
अब बसंत की बारी है।
फूल खिल रहे महके-महके,
मयूर, कोयल सब हैं चहके।
चिड़िया फुदके टहनी-टहनी,
कैसी हंसती क्यारी है।
भंवरों में है मस्ती छाई,
शीतल चलती है पुरवाई।
धरती ने भी प्यार लुटाया,
तितली कैसी न्यारी है।
सूरज मंद-मंद मुस्काता,
चंदा अपने रूप दिखाता।
तारे सुन्दर गीत सुनाते,
कुदरत अजब पिटारी है।
साभार - देवपुत्र